Shri Dungargarah Live

Hindi News POrtal

इतिहास के पन्नो से…सारस्वत समाज के आदिपुरुष सरसजी महाराज

श्रीडूंगरगढ़ लाइव…9 अप्रेल 2023। प्रिय पाठकों,
श्रीडूंगरगढ़ जनपद की कतिपय दिलचस्प ऐतिहासिक जानकारियां श्रीडूंगरगढ़ के साहित्यकार, पत्रकार एवं इतिहासविद डाॅ चेतन स्वामी हमारे साथ नियमित साझा कर रहे है।

इतिहास पुरुष –सरसजी महाराज

श्रीडूंगरगढ़ शहर सहित निकट के गांवों में सारस्वत समाज की बहुत बड़ी आबादी है सारस्वत समाज के आदि पुरुष श्री सरस जी महाराज थे। जो कहते हैं की विक्रम की 12 वीं शताब्दी के प्रारंभिक वर्षों में जैसलमेर के लुद्रवा में हुए। सरस जी में एक विद्वान ब्राह्मण के सारे ही गुण मौजूद थे। भारत के विभिन्न जातीय ब्राह्मण कुल में सारस्वत जाति अपना विशेष महत्व रखती है। सरस्वती नदी के किनारे सारस्वत सभ्यता को पोषित करने वाले ये ब्राह्मण सारस्वत कहलाए। सरस्वती नदी का प्रवाह हिमाचल से लेकर सिंध पाकिस्तान तक था।
महापुरुष सरस जी की कथाओं में विभिनता बहुत है। उनके सारे कथा सूत्रों को एक लय में पिरोने की आवश्यकता है। लुद्रवा के शासक ने सरसजी से यज्ञ करवाया। पर कहते हैं कि निर्लोभी सरस जी ने सोना,तिल आदि विघातक दान लेने से मना कर दिया। राजा से अनबन होने पर वे जैसलमेर राज्य का परित्याग कर गए। उन्हें रास्ते में अनेक संकट भुगतने पड़े पर किसी तरह वे नागौर तक पहुंच गए। नागौर पर उस समय नागवंशी राजा पृथ्वीराज का आधिपत्य था और वह किसी असाध्य रोग से पीड़ित था। मां विंध्यवासिनी देवी का इष्ट रखने वाले सरसजी पीयूषपाणि चिकित्सक भी थे। उन्होंने राजा पृथ्वीराज को स्वस्थ कर दिया। राजा ने माही नामक एक ऊंटनी दी और कहा कि महाराज प्रातःकाल से सायंकाल तक आप इस ऊंटनी से जितनी यात्रा कर आएंगे उतनी भूमि पर आपका अधिकार होगा। सरस जी की कथा बहुत लंबी है। उन्होंने सारसू नामक गांव बसाया। लगभग नौ सौ वर्ष प्राचीन सारसू और सात सौ वर्ष प्राचीन रूपालसर को सम्मिलित करते हुए ही संवत 1939 में महाराज श्रीडूंगरसिंहजी ने अपने नाम पर श्रीडूंगरगढ़ शहर बसाया।
सरसजी महाराज की कथा विभिन्न स्वरूपों में प्राप्त होती है। इस क्षेत्र के सारस्वत कुंडिया (जातिय नियम-आचार) में बंधे हैं। वर्तमान में सरसजी महाराज प्राचीन मंदिर श्रीडूंगरगढ़ में और लूणकरणसर क्षेत्र के गाँव शेरेरा में भी एक मंदिर है। श्रीडूंगरगढ़ तहसील के ठुकरियासर गांव में सरसजी महाराज का सुंदर मंदिर भी निर्माणाधीन है।
सरसजी महाराज का इतिहास अगर विधिवत प्रकाशित है तो लेखक की पढ़ने की इच्छा है। और अगर नहीं प्रकाशित है तो सारस्वत जाति के विद्वानों से निवेदन है कि वे इसे प्रयत्नपूर्वक तैयार करवाएं।

श्री सरसजी महाराज

error: Content is protected !!