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इतिहास के पन्नो से…

श्रीडूंगरगढ़ लाइव…23 मार्च 2023।प्रिय पाठकों,
श्रीडूंगरगढ़ जनपद की कतिपय दिलचस्प ऐतिहासिक जानकारियां श्रीडूंगरगढ़ के साहित्यकार, पत्रकार एवं इतिहासविद डाॅ चेतन स्वामी हमारे साथ नियमित साझा कर रहे है।

अलबेलां नै कुण ओळखसी ?
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परमात्मा की गढी हुई हरेक मूरत अलबेली होती है। पर कुछ अलबेले चित्त में छा जाते हैं। हर शहर और गांव में ऐसे अलबेले मिल जाते हैं, जिन पर हमारी मुस्कुराती नजर ठहर जाती है। श्रीडूंगरगढ़ में तो ऐसे अलबेलों की भरमार रही है। झूमर बोथरा और बनजी डागा तो पडौसी ही थे। झूमर दिल से नेक थे। ऐसे लोगों के दिल में पाप या कलमस जैसा कुछ होता ही नहीं है। ऐसे ही बनजी कठोर मेहनती। घड़े ढोकर दो रुपये कमाने की उनकी मेहनत को सलाम। भंवरलाल जी डागा के गीतों और उनके सार्वजनिक प्रवचनों को कौन भूल सकता है। हर दिन गलियों में नए-नए ठेठ राजस्थानी लोकगीत गाते हुए मिल जाते। आश्चर्य की बात वे पुरूषों के द्वारा गाए जाने वाले राजस्थानी गीतों या फिल्मी गीतों को कभी नहीं गाते। घरों में महिलाओं द्वारा गाए जाने वाले गीत ही गाते। उनकी स्मृति में सैकड़ों गीत थे।
मोमासर में भी ऐसे अलबेले लोगों की भरमार रही है। वहां भी एक सज्जन महिलाओं में बैठकर उनके सारे गीत उन्हीं की राग में गा दिया करते। मोमासर के ही दीपजी पटावरी ऊंची सूंडी वाले व्यक्ति थे। गांव के प्रसिद्ध पटावरी खानदान से थे। वे लाल झंडी–हरी झंडी कहने से चिड़ते। बच्चे खूब चिड़ाया करते। ऐसे लोग होने बंद नहीं हो गए। पर हमारी दृष्टि का विस्तार इन दिनों में अचानक चला गया।

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