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इतिहास के पन्नो से…. श्रीडूंगरगढ़ का प्राचीन शैक्षिक परिदृश्य

श्रीडूंगरगढ़ लाइव 18 जून 2023। प्रिय पाठकों,
श्रीडूंगरगढ़ जनपद की कतिपय दिलचस्प ऐतिहासिक जानकारियां श्रीडूंगरगढ़ के साहित्यकार, पत्रकार एवं इतिहासविद डाॅ चेतन स्वामी हमारे साथ नियमित साझा कर रहे है।

श्रीडूंगरगढ़ का प्राचीन शैक्षिक परिदृश्य

आज से सतर वर्ष पहले श्रीडूंगरगढ में शिक्षा मारजा पद्यति से दी जाती थी। कालूबास में शिवप्रतापजी व्यास किलचू गांव से आए।इन से पहले यहां महताब जी छंगाणी, -बच्छराजजी गुरुजी, झींटिया गुरु जी, सुखदासजी गुरु जी अपनी धाक जमा चुके थे। सुखदासजी मोमासर बास के गुरुजी थे। महताब जी बिग्गा बास के गुरुजी थे। लीलावती के प्रकांड विद्वान थे। गणित और वाणिज्य का सम्मिलित रूप लीलावती याद होना उस समय बड़ी बात थी। स्वामी सुखदासजी बड़े सरल व्यक्ति थे। टीकू गुरुजी लम्बी सी चोटी रखते। उनका कोई एक स्थान नहीं था। कुछ दिन शिव मिडिल स्कूल में भी रहे। तो कुछ दिन झंवरों की महफिल में पढाया। कुछ दिन चिमनीरामजी के कुए के निकट एक बगीची में पढाया।
इन गुरुओं की एक ही जिम्मेदारी हुआ करती थी -बाणिकी सिखा देना। ।कक्षाएं अधिकांश सम्मिलित ही हुआ करती थीं। स्कूल में नाम लिखाने के लिए एक नारियल की आवश्यकता होती थी। गुरु के तो नारियल ही चढता है। फीस साल भर की एक रुपया हुआ करती थी। यह राशि कोई पैसेवाला होता वह देता। निर्धन विद्यार्थिर्यों से गुरुजी मांगते रहते और साल दर साल शिष्य आगे बढते रहते।

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