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हारे वही जो लड़ा ही नही : 6 – सेवा

श्रीडूंगरगढ़ लाइव 18 जून 2023।श्री श्याम सोनी एक बहुआयामी व्यक्तित्व रखते हैं, आप न केवल एक सफल बिजनेसमैन हैं, बल्कि आर्ट ऑफ लिविंग के एक कुशल शिक्षक, योग प्रशिक्षक और मर्म चिकित्सा प्रशिक्षक भी हैं। आज से श्रीडूंगरगढ़ लाइव पर प्रतिदिन पाठकों से रूबरू हुआ करेंगे।

अपनो से अपनी बात – 15
हारे वही जो लड़ा ही नही – 6 – सेवा

विपरीत समय मे विजय के 7 सुत्र
संकल्प
सहयोग
साधना
स्वध्याय
सत्संग
सेवा
समर्पण

सेवा
स+ एव = सेवा
ईश्वर के समरूप हो जाना सेवा
संकल्प की सहज सिद्धि की निरंतरता की गारंटी
सत्संग की ऊर्जा सेवा से परिष्कृत हो निखरती है।
द्वेष -अंहकार से मुक्ति का साधन है सेवा
सात्विक ऊर्जा का शाश्वत स्रोत है सेवा
तन ,मन ,धन की शुद्धि सेवा से सम्भव
जी हां बिना सत्संग के मिली सफलता अशुद्ध होती है।
जिसके परिणाम शरीर – मन – संस्कार पर विपरीत होते ही है।
पर इन सब का भी  समाधान सेवा से सम्भव है।
शऱीर की सेवा से शारीरिक समृद्धता,
सर्वप्रिय वाणी व कल्याण कारी भावो से मन की शुद्धि
सुपात्र को बिना फल की कामना से दान से धन की शुद्धि सहज सम्भव होती है।
सेवा से संघर्ष समृद्ध-सम्पूर्ण हो धर्मयुद्ध बन जाता है।
अर्जित सम्पदा (शारीरिक,मानसिक, वैचारिक, आर्थिक) जब भी हम सेवा मे लगाते है इसे ना केवल परिष्कृत करते है।
सेवा ईश्वर की बांसुरी बनने जैसा है, जिससे उसकी अनंत कृपा आपके माध्यम से सब पर बरसती है।
हमारे ग्रंथो मे गूढ पर सुंदर भावार्थ मे लिखा गया है कि जिनके पास है उन्हे और दिया जायेगा और जो कहते है हमारे पास नहीं है, उनसे वापिस ले लिया जायेगा।
सेवा कृतज्ञता समर्पण है कि हे ईश्वर आपने बहुत दिया है।

प्रयोग –
ईश्वर ने हम सबको युनिक बनाया है ।
हमे किसी ना किसी योग्यता से नवाजा है ।
जो हम सब मे Inherit स्वाभाविक शक्तियां है।।
हम सब मे नृत्य, गायन (हमारे गांव के प्रसिद्द भजन गायक अपने गायन से प्राप्त मानधन गौशाला को दिया करते थे)

लेखन ,डॉक्टर – वकील -सीए ,एकाउंटेट,मोटिवेटर ,योग शिक्षक आदि योग्यताएं जिनसे हम अपना जीवन यापन करते है ।हम इन्ही योग्यताओं से सप्ताह मे  2-3 घण्टे निशुल्क सेवा दे सकते है।गुरूद्वारो मे हम जूते साफ करते,भण्डारा आदि मे सेवा करते अक्सर दिखाई देते है।
हम हमारे अर्जित धन का भी 2 से 5 % सेवा कार्य मे लगाना चाहिये।
यह सेवा देकर हम ईश्वर का संकल्प सिद्धि व सुफलता की अनंत कृपा के लिये आभार करते है और अपनी सुफलता की ना केवल शद्धि करते है ,बल्कि इसे शाश्वत भी बना देते है।
स्मरण रहे हर सेवा ईश्वर के स्वरूप को ही अर्पित करते है।
इस श्रृँखला का पूर्णाहुति भाग समर्पण पर कल संवाद करेगे ।

आपके सुझाव ,सवाल,विचारो का इंतजार है।

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