श्रीडूंगरगढ़ लाइव 06 जून 2023। प्रिय पाठकों,
श्रीडूंगरगढ़ जनपद की कतिपय दिलचस्प ऐतिहासिक जानकारियां श्रीडूंगरगढ़ के साहित्यकार, पत्रकार एवं इतिहासविद डाॅ चेतन स्वामी हमारे साथ नियमित साझा कर रहे है।
श्रीडूंगरगढ़ और लोक मांडण
देखते-देखते हम अपनी कलाएं भूलते जा रहे हैं। कुछ वर्षों पूर्व हम अवसर विशेष पर अपने घरों में मांडणे बनाया करते थे। मांडणो का सम्बन्ध लोक देवताओं की रक्षात्मक शक्ति से है। मांडणे उल्लास के साथ बनाए जाते थे । मांडणो के रंग सीमित होते। राती और धोली मिट्टी तथा गोबर ही रंग के बतौर प्रयोग लिए जाते। कुछ मांडणे कुमकुम से भी बनाए जाते। मांगलिक अवसर पर मांडणे अंकित करना हमारी परम्परा रही है।
विवाह के अवसर पर माया का मांडना बनाया जाता रहा है। माया शुभ की देवी है। माया के आगे वर-वधू के हाथों की छाप मेंहदी से लगाई जाती है। माया को उठाने पर ही विवाह की समाप्ति मानी जाती है।
बालक-बालिकाओं के जन्म पर रोळी से बेमाता के मांडणे बनाए जाते रहे हैं। नामकरण संस्कार के दिन प्रसुता, बेमाता के आगे धोक देकर–बालक-बालिका के सौभाग्य की कामना करती है।
गणगौर के मांडणे सफेद मिट्टी-छाछ तथा गोबर से बनाए जाते हैं। बालिकाएं इन्हीं मांडणो के सामने फुलड़े चढा कर गवर पूजती है। शीतला सप्तमी के दिन मेहंदी और रोली से परींडे में शीतला का अंकन किया जाता है। यहीं राख के लड्डुओं से शीतला का पूजन किया जाता है।
गोगाजी-तेजाजी-केशरा कंवरजी के मांडणे गोबर से बनाए जाते हैं।
मांडणा कला को सुरक्षित रखने के लिए इसे पर्वों से जोड़ा गया। पर, अब धीरे-धीरे हम अपनी संस्कृति के अधिकांश पक्षों से कटते जा रहे हैं।










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