श्रीडूंगरगढ़ लाइव…21 मई 2023। प्रिय पाठकों,
श्रीडूंगरगढ़ जनपद की कतिपय दिलचस्प ऐतिहासिक जानकारियां श्रीडूंगरगढ़ के साहित्यकार, पत्रकार एवं इतिहासविद डाॅ चेतन स्वामी हमारे साथ नियमित साझा कर रहे है।
झंवरों के मंदिर का जीर्णोद्धार

श्रीडूंगरगढ़ की स्थापना के बाद कालूबास का विस्तार होते-होते तीन चार वर्ष लगे। माहेश्वरियों के मौहल्ले में ठाकुर जी के मंदिर की आवश्यकता को महसूस किया गया। उसी आवश्यकता के परिणाम स्वरूप रघुनाथजी का मंदिर अस्तित्व में आया । 135 वर्ष पहले बने इस मंदिर के पहले पुजारी एक वीतरागी संत पूरणदासजी थे। वे मंदिर के सामने झंवरों की बगीची की (वर्तमान का माहेश्वरी भवन ) एक कोटड़ी में रहते और ठाकुर जी की पूजा भी करते। उनके आगे पीछे कोई नहीं था। उनकी मृत्यु के उपरांत देशनोक से ब्रह्मचारी सरजूदासजी को आग्रह कर यहां लाया गया। झंवरों का मंदिर पूर्व में बहुत छोटा था। सरजूदासजी ने संवत् 2017 में इसका जीर्णोद्धार करवाया। दिल्ली से नई मूर्तियां लाए। सुगनचंदजी झंवर को प्रेरित कर निकट में हनुमानजी का मंदिर बनवाया। हनुमानजी के मंदिर पर साठ वर्ष पहले 929 रुपये खर्च हुए। देखरेख डूंगरमलजी मोहता ने की। सुगनचंदजी–डूंगरमलजी के बहनोई थे।

साठ वर्ष पहले झंवरों के मंदिर का शानदार जीर्णोद्धार हुआ। चूंकि मंदिर श्रीडूंगरगढ़ के निचले क्षेत्र में बना है। इन साठ वर्षों में यह पांच छह फीट नीचे हो गया है। उस समय सरजूदासजी ने मंदिर के निर्माण में अपने प्राण झौंक रखे थे। इसलिए इसे बहुत मजबूत बनवाया। इसकी चुनाई चूने में है। अभी इसका एक हजार वर्ष कुछ नहीं बिगड़ना है। चूंकि यह नीचा हो गया-इसलिए छत की पट्टियां हटा कर केवल दस फीट का चेजा उठाना है।नीचे रेत का भराव होकर गर्भ गृह ऊपर उठ जाएगा। अनुमानतः बीस लाख रुपये की राशि खर्च कर इस मंदिर को शानदार नव रूप दिया जा सकता है।
ये मेरे निजी विचार हैं–जरूरी नहीं है आप सहमत हों।

वर्तमान में इसकी पूजा और व्यवस्था पुजारी तुलसीराम जी के पुत्र अशोक जी आसोपा द्वारा नित्यरूप से की जा रही है। इनके ही प्रयासों से अभी वर्तमान में मुख्य द्वार पर सीढ़ियों की जगह ढलवा फर्श बनवाया गया है जिससे बड़े बुजुर्गों को मंदिर में आने-जाने में परेशानी ना हो।










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