श्रीडूंगरगढ़ लाइव…04 मई 2023।प्रिय पाठकों,
श्रीडूंगरगढ़ जनपद की कतिपय दिलचस्प ऐतिहासिक जानकारियां श्रीडूंगरगढ़ के साहित्यकार, पत्रकार एवं इतिहासविद डाॅ चेतन स्वामी हमारे साथ नियमित साझा कर रहे है।
कैसे बसा कलकत्ता..?
एक अंग्रेज जिसका नाम था- जाॅब चार्नाक। उसने सन् 1690 में 24 अगस्त को कलकत्ता की नींव रखी। कलकत्ता के निकट तब सुतानटी और गोविन्दपुर गांव थे। यहां नवाब सिराजुद्दौला का अधिकार था, पर क्लाइव और वाटसन ने शीघ्र ही कलकत्ता पर अधिकार कर लिया। कलकत्ता में अंग्रेजों द्वारा बनाया गया फोर्ट विलियम किला सन् 1773 में बनकर तैयार हुआ। चौरंगी क्षेत्र में यूरोपीयन और अंग्रेजों को बसाने के लिए यहां स्थित जंगल को साफ कर एक बस्ती बसाई। अंग्रेजों ने इस बस्ती को तेजी से विकसित किया। सन 1866 में यह एशिया का लंदन कहलाने लगा। तभी एक विनाशकारी तूफान ने कलकत्ता को तहस-नहस कर दिया। 80 हजार लोग मारे गए। कुछ अर्से बाद कलकत्ता फिर से पांवों पर खड़ा हुआ। प्रारंभ में यहां से चंदन, हाथी दांत,शीशम,लोंग, दालचीनी, गोल मिर्च, सूखे मसाले, सूखे मेवे तथा अफीम की मांग चीन देश में थी। मारवाड़ी आए उन्हें पाट, अफीम, रूई का धंधा उत्तम लगा। यहां सट्टा बाजार बना। यहां से रूई का व्यवसाय मुम्बई में हुआ। मारवाड़ी प्रेमचंद रायचंद सट्टा बाजार का प्रारंभिक किंग था। उसकी मूंछ के एक बाल की कीमत एक एक लाख रुपए थी। दूलीचंद भी बडा सट्टेबाज था। मारवाड़ी लोगों को कलकत्ता बडा लुभाता था और आज भी लुभाता है, कलकत्ता मारवाड़ियों को घर जैसा ही प्रतीत होता है। यहां का जो हाथ रिक्शा है, वह चीन से आया।










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