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इतिहास के पन्नो से….श्रीडूंगरगढ में धार्मिकता की लहर लाने वाले सत्पुरूष -श्री सूरजमल -पूरण चंद सोनी

श्रीडूंगरगढ़ लाइव…02 मई 2023। प्रिय पाठकों,
श्रीडूंगरगढ़ जनपद की कतिपय दिलचस्प ऐतिहासिक जानकारियां श्रीडूंगरगढ़ के साहित्यकार, पत्रकार एवं इतिहासविद डाॅ चेतन स्वामी हमारे साथ नियमित साझा कर रहे है।

जिस व्यक्ति की उम्र 70 वर्ष के पार है, वह जानता है कि एक समय हर धार्मिक कार्यक्रम के पर्याय यहां के दो भाई थे, जिनका नाम था -सूरजमल -पूरणचंद सोनी। श्रीडूंगरगढ बसने के कुछ वर्षों बाद उदरासर गांव से ज्ञानीरामजी सोनी यहां कालूबास में आकर बस गए। उनके चार पुत्र हुए, तिलोकचंदजी, मुरलीधरजी, सूरजमलजी और पूरणचंदजी। व्यवसाय के लिए दीनहट्टा में गद्दी थी। एक समय *पन्नेचंद सूरजमल* -फर्म ने काफी उन्नति की। पन्नेचंदजी, ज्ञानीरामजी के भाई थे।
सूरजमलजी की प्रवृत्ति अत्यधिक धार्मिक होने के कारण संवत 2006 में उन्होंने विष्णु भवन की जगह झंवरों से खरीदी। वस्तुतः यह जगह पहले रामसनेही साधुओं की जगेरी थी, जिसका सम्बन्ध सींथल द्वारे से था।यहां जो रामसनेही साधु था,उसने बहुत वर्षों तक लोगों की चिकित्सा की थी। साधुओं ने यहां एक विशालकाय जल कुण्ड बनवाया। घोर पेयजल संकट के दिनों में वे रूपालसर गांव से आने वाले लोगों को एक-एक घड़ा पानी दिया करते। बालचंद कोडामल डागा परिवार में इस रामसनेही ने उनके किसी पूर्वज की बढिया चिकित्सा की तब उन्होंने ये कुंड बनाकर दिया था। इस जगह को कोई सम्भालने वाला शिष्य नही होने से उन्होंने यह जगह कालूबास के किसी झंवर को बेच दी। उनसे सूरजमलजी ने खरीद कर पुनः यहां धार्मिक कार्यक्रम आयोजित करने शुरू कर दिए। उनके सौजन्य से श्रीरामसुखदासजी जी महाराज ने अपना चातुर्मास यहां किया। इस भवन में सदैव संतों का जमघट लगा रहता। नृसिंहगिरिजी, पूरणानंदजी, कृष्णानंदजी, गौरां महाराज के यहां चातुर्मास हुए। थोड़े -थोड़े समय के लिए तो कोई न कोई साधु यहां सत्संग करते ही रहते थे। विश्व प्रसिद्ध श्री हनुमानप्रसादजी पोद्दार, जयदयालजी गोयनका भी पूरनचंदजी के स्नेह के कारण यहां सत्संग करने आते थे। बाद में उन्होंने यहां कुआ भी करवा दिया।
बाजार के मध्य में सिन्धी कटला के कोने पर प्याऊ बनवादी। स्टेशन पर प्याऊ शुरू की। नेहरू पार्क के निर्माण में बड़ा योगदान दिया। अपनी हवेली के नीचे धर्मार्थ आयुर्वेदिक चिकित्सालय शुरू किया, जो आज भी चल रहा। गत दिनों विष्णु सागर कुए का भी जीर्णोद्धार इनकी संतति के द्वारा करवा दिया गया है। निकट ही एक सभागार का निर्माण करवाया गया है, जिसमें रोजाना सत्संग होती है। कालू बास की बालिका विद्यालय में भी दोनों भाइयों का बड़ा योगदान रहा। माहेश्वरी भवन के निर्माण तथा यहां होनेवाली सत्संगों में भी उन्होंने उदारतापूर्वक सहयोग किया।श्रीडूंगरगढ के इतिहास में इस गृहस्थी साधु को महामानव कहना अतिशयोक्ति नहीं है ।
समय की बलिहारी है। आज विष्णु भवन चालीस वर्षों से अपने उस सरल, उदार,महामानव को याद करता है। अब यहां एक स्कूल चल रहा है।एक दिन भी जिस भवन को साधुओं के प्रवचनों से विरत नहीं रहने दिया, वह अब घोर उपेक्षा का शिकार हो चुका है। समय बदल गया। सब दिन रहत न एक समान। फिर भी यह परिवार उदार है, जिस तरह विष्णु सागर का जीर्णोद्धार इसका भी करवाने का मन अवश्य ही रखते होंगे।
सूरजमलजी 50 वर्ष की अवस्था में व्यापार का परित्याग कर अपने प्यारे श्रीडूंगरगढ को धार्मिक संस्कार देने में जुट गए। उन्हें अपनी मृत्यु का पूर्वाभास हो गया था। नृसिंह गिरिजी महाराज को कहा -महाराज अब जाएंगे। इस दिव्य विभूति को मेरा शत शत प्रणाम।
इसी परिवार के श्री कैलाश जी सोनी, जयपुर सामाजिकता में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। वर्तमान में वे पश्चिमांचल अखिल भारतवर्षीय माहेश्वरी महासभा के संयुक्त मंत्री हैं तथा अखिल भारतीय माहेश्वरी सेवा सदन के वरिष्ठ उपाध्यक्ष हैं।

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