श्रीडूंगरगढ़ लाइव…12 अप्रेल 2023।प्रिय पाठकों,
श्रीडूंगरगढ़ जनपद की कतिपय दिलचस्प ऐतिहासिक जानकारियां श्रीडूंगरगढ़ के साहित्यकार, पत्रकार एवं इतिहासविद डाॅ चेतन स्वामी हमारे साथ नियमित साझा कर रहे है।
श्रीडूंगरगढ़ से 9 दिन पहले लालगढ़ बसा
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महाराजा डूंगरसिंहजी को एक ही माह में दो नए शहर बसाने का प्रस्ताव मिला। एक तो श्रीडूंगरगढ़ दूसरा लालगढ। एक स्वयं के नाम पर दूसरा अपने पिता लालसिंहजी के नाम पर। श्रीडूंगरगढ़ बसाने से मात्र 9 दिन पहले संवत 1939 की वैसाख सुदी 9 को लालगढ़ बसाने का आदेश महाराजा ने प्रदान किया। यह लालगढ़, झोरड़ा हरिरामजी महाराज के जाते हैं तो बीच में आता है। कातर से आगे। श्रीडूंगरगढ़ को बसाने का आग्रह ओसवालों का रहा, वहीं लालगढ़ को बसाने में माहेश्वरी जाति के बजाज, तापड़िया जाति की अग्रणी भूमिका रही। लालगढ़ की जगह पहले *किणतु* नाम का गांव रहा था। यह अजीब सा, अटपटा किणतु नाम, गांव वालों को बहुत सालता था।
श्रीडूंगरगढ़ मे घर के पट्टे का नाप 1218 गज का रखा गया ,जबकि लालगढ़ के पट्टे का नाप 1000 गज रखा गया। दूकान, पट्टा और नोहरे की कीमत वहां भी श्रीडूंगरगढ़ की भांति सवा रुपिया रखी गई। दूकान के साइज में भी अंतर रखा गया, श्रीडूंगरगढ़ में दूकान 6×18 गज नाप की तथा लालगढ़ में 5×18 गज के नाप की रखी गई। धुआं-भाछ का शुल्क यहां की भांति प्रति गवाड़ी एक रुपया सालीणा रखा गया। पांच वर्ष के लिए जगात में छूट की गई। कुआ और तालाब राज की ओर से कराने का आश्वासन दिया गया। गांव का पट्टा भैरूंदान सरावगी, सवाईराम बजाज, रामरख बजाज, आसकरण तापड़िया तथा हणतुराम सरावगी को सौंपा गया। लालगढ़ बसा तो श्रीडूंगरगढ़ के साथ-साथ, किन्तु उसका श्रीडूंगरगढ़ जितना विस्तार और विकास नहीं हो पाया। आज भी लालगढ़ की आबादी लगभग 11000 हजार ही है। कहने को लालगढ़ शहर है, पर उसमें उप तहसील भी अभी तक नहीं है। गत दिनों इस साल के बजट में कातर को उप तहसील बना दिया गया। जबकि लालगढ़, मोमासर की भांति इंतजार ही करता रहा।










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