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इतिहास के पन्नो से…घोड़े पर दही बिखर गया

श्रीडूंगरगढ़ लाइव…10 अप्रेल 2023।प्रिय पाठकों,
श्रीडूंगरगढ़ जनपद की कतिपय दिलचस्प ऐतिहासिक जानकारियां श्रीडूंगरगढ़ के साहित्यकार, पत्रकार एवं इतिहासविद डाॅ चेतन स्वामी हमारे साथ नियमित साझा कर रहे है।

घोड़े पर दही बिखर गया


संवत 1647 में जन्मे गारबदेसर के भक्त ठाकुर किशनसिंहजी जब घर से बाहर किसी अभियान में होते तब मुरली मनोहर श्रीकृष्ण की भक्ति मानसी रूप में किया करते थे। भक्ति, में मानसी भक्ति को सर्वोच्च स्थान दिया गया है। व्यक्ति चाहे कहीं पर कोई कार्य करे लेकिन उसका तार भगवान से हर घड़ी जुड़ा रहता है।
एक बार किशनसिंहजी बीकानेर महाराजा के साथ किसी अभियान में चल रहे थे। प्रातःकाल के समय उन्हें अपने भगवान मुरलीधरजी की पूजा की स्मृति आई। तब वे उनकी मानसी पूजा करने लगे। अपने मंदिर में वे हमेशा ही भगवान को दही और मिश्री का भोग लगाया करते थे। वे घोड़े पर चल रहे थे। घोड़े पर बैठे बैठे ही उन्होंने भगवान की मानसी पूजा प्रारंभ कर दी। और एक ओढ़ने के वस्त्र को मुख और शरीर पर इस तरह से लपेट लिया कि किसी दूसरे को पता नहीं चले कि वे वस्त्र के भीतर क्या कर रहे हैं। उनके इस कृत्य को निकट में चल रहे दूसरे घुड़सवार ने देखा, उसने समझा कि किशनसिंहजी घोड़े पर नींद ले रहे हैं। उन्होंने यह बात महाराजा को कही। महाराजा ने अपना घोड़ा किशनसिंहजी के निकट लिया और मुख पर ओढ़े हुए वस्त्र को हाथ से खींचा। महाराजा की इस अप्रत्याशित कार्रवाई से किशनसिंहजी झिझक पड़े। उनकी मानसी सेवा में बाधा पहुंची। और तभी महाराजा यह देखकर दंग रह गए कि उनके घोड़े पर बहुत सारा दही छलक पड़ा था। तब महाराजा ने किशनसिंहजी से पूछा कि यहां यह घोड़े पर दही कहां से आया? भक्तराज किशनसिंहजी ने बहुत विनय पूर्वक कहा कि महाराज मैं मानसिक रूप से अपने ठाकुर को दही का भोग लगा रहा था। इसी बीच आपने जब मेरा वस्त्र खींचा तो मैं झिझक पड़ा इससे यह दही भौतिक रूप में उपस्थित होकर छलक पड़ा। आप मुझे क्षमा करें। तब बीकानेर महाराजा ने कहा कि किशनसिंहजी मैंने यह अपराध कर दिया और अब इसका प्रायश्चित यह हो सकता है कि आपको इस तरह से मेरे साथ चलने का कष्ट नहीं देंगे। आप घर पर रहकर ही अपने ठाकुर को रिझाया करें। इस तरह के निष्ठावान भक्त थे गारबदेसर के किशनसिंहजी राठौड़।

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