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इतिहास के पन्नो से…शहर कोटवाळ

श्रीडूंगरगढ़ लाइव…5 अप्रेल 2023। प्रिय पाठकों,
श्रीडूंगरगढ़ जनपद की कतिपय दिलचस्प ऐतिहासिक जानकारियां श्रीडूंगरगढ़ के साहित्यकार, पत्रकार एवं इतिहासविद डाॅ चेतन स्वामी हमारे साथ नियमित साझा कर रहे है।

शहर कोटवाळ

श्रीडूंगरगढ़ शहर बसने के बाद इस बात की आवश्यकता महसूस की गई कि शहर कोटवाळ का काम कौन करे। घरों से मृत पशुओं को कौन उठाए। ऐसे किसी कार्य के लिए निकट के जेतासर गांव के सांसी को जाकर बुलाना पड़ता। वह भूराराम नामक सांसी यहां यहां आने के लिए अनुचित शर्त लगाता। अंततः शहर के गणमान्य जनों ने निकट के डेलवां गांव के भैराराम सांसी को इस गांव में बसकर शहर कोटवाळ के रूप में काम करने का आग्रह किया। उसे बसाने तथा निकट में हाडाखोड़ी के लिए एक बड़ी सी जमीन दी गई। यही नहीं उसको एक काफी बड़ा खेत शहर के निकट दिया गया। सन 1914 को यह परिवार डेलवां से यहां आकर बस गया। सौ वर्षों में सांसी परिवार बढकर पच्चीस से अधिक घरों का हो गया। कोई भी जरूरी सूचना, आपात सूचना जैसे लाय लग जाना, विशेष पंचायत की सूचना की मुनादी करने का काम कोटवाळ का होता। भैराराम कोटवाळ की आवाज इतनी बुलंद हुआ करती थी कि उसका हेला एक किलोमीटर से अधिक दूर तक सुनाई देता था। भैराराम संयत और संतोषी स्वभाव का व्यक्ति था। त्यौहारा विशेष पर घर की महिलाओं को प्रत्येक वासिन्दा त्यौंहारी दिया करता था तथा विवाह–मृत्यु भोज पर भी इस परिवार को त्यौंहारी देने का रिवाज था। आजकल इस परिवार की नयी पीढी ने अपना पैतृक धंधे का लगभग परित्याग कर दिया है तथा छोटामोटा व्यवसाय करने लगे हैं और कुछ लोग नौकरी भी करने लगे हैं।

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