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इतिहास के पन्नो से…वो मूर्ति जो सोना उगलती थी

श्रीडूंगरगढ़ लाइव…1 अप्रेल 2023।प्रिय पाठकों,
श्रीडूंगरगढ़ जनपद की कतिपय दिलचस्प ऐतिहासिक जानकारियां श्रीडूंगरगढ़ के साहित्यकार, पत्रकार एवं इतिहासविद डाॅ चेतन स्वामी हमारे साथ नियमित साझा कर रहे है।

मूर्ति सोना उगलती थी
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बीकानेर के संस्थापक राव बीका के तृतीय पुत्र घड़सी की पटरानी गारबदे के नाम पर गारबदेसर को बसाया गया। गारबदेसर की राठी गायें पूरे भारत में प्रसिद्ध रही हैं। कभी राठ मुसलमान यहां व्यापक पैमाने पर गोधन का पालन करते थे।
समूचे भारत में गारबदेसर गांव भक्त किशनसिंहजी की आध्यात्मिक निष्ठा और भक्ति के कारण भी प्रसिद्ध है। भक्त किशनसिंहजी गारबदेसर के जागीरदार थे। उनका जन्म संवत 1647 में हुआ। वे बीकानेर के संस्थापक राव बीका की पांचवी पीढ़ी में राठौड़ राजसिंह के पुत्र थे। वे बाल्यकाल में ही भगवान श्रीकृष्ण के परम भक्त बन गए। एक बार वे अपने ननिहाल उदयपुरवाटी में भगवान की पूजा कर रहे थे, तभी उन्होंने मन ही मन प्रण किया कि वे पूजा से तभी उठेंगे, जब भगवान स्वयं साक्षात रूप में प्रकट होकर दर्शन देंगे। वे चार दिन तक निराहार वहीं मंदिर में बैठे भगवान की प्रतीक्षा करते रहे। घरवाले मना कर हार गए, पर वे टस से मस नहीं हुए। उनकी निष्ठा अडोल रही।अंततः भगवान एक बूढ़े ब्राह्मण का शरीर धरकर आए तो उन्होंने चरण पकड़ कर कहा, भगवन किरीट कुंडल पितांबर धारण कर जब तक नहीं प्रकट होंगे, मैं आपके चरण नहीं छोड़ सकता। भगवान को भक्त की बात रखनी पड़ी। तब उन्होंने ठाकुरजी से दूसरी विनय की कि अब मैं थोड़े दिनों में मेरे गांव गारबदेसर जाऊंगा आपको वहां उपस्थित होना पड़ेगा। भगवान ने कहा मैं तुम्हारी निष्ठा में सदैव रहूंगा।
बड़े भाई की मृत्यु के पश्चात किशनसिंह गारबदेसर के जागीरदार बने। उन्हें भगवान मुरलीधर का इष्ट था। कहते हैं स्वयं भगवान ने ही अपनी मूर्ति उन्हें प्रदान की थी। वह चमत्कारी मूर्ति आज भी गारबदेसर स्थित मुरलीधरजी के मंदिर में शोभायमान- विराजमान है। दयालु हृदय के किशनसिंह प्रजा पालक थे। गो और ब्राह्मण की सेवा करते थे। उन्होंने भगवान से विनती की कि मैं प्रतिदिन ब्राह्मणों को धन-द्रव्य भेंट देना चाहता हूं। पर मेरे पास तो द्रव्य है नहीं। तब भगवान की उस मूर्ति ने सवा भार सोना उगलना प्रारंभ कर दिया। जिसे वे प्रतिदिन ब्राह्मणों को दान दे दिया करते थे। एक दिन ठकुरानी के मन में लालच उत्पन्न हुआ और सोने की उस दिव्य चमक से प्रभावित होकर उसने कहा कि यह सोना मैं अपने आभूषण में काम ले लूं और इसके बदले में दूसरा सोना दान दे देते हैं। किशनसिंह जी ने कहा-ऐसा करना उचित नहीं है। उस दिन के बाद स्वत: ही उस मूर्ति ने सोना उगलना बंद कर दिया। लेकिन भगवान मुरलीधरजी की मूर्ति के मुख में वह चमकदार सोना आज भी ठहरा हुआ है। दूर-दूर से लोग इस चमत्कारी मूर्ति को देखने के लिए आते रहते हैं। पिछले दशक में इस मंदिर का सुंदर जीर्णोद्धार करवा दिया गया है। भक्त किशनसिंहजी के जीवन की अनेक घटनाएं दिव्य और चमत्कारी रही हैं।

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