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हारे वही जो लड़ा ही नही – 5 सत्संग

श्रीडूंगरगढ़ लाइव 17 जून 2023।श्री श्याम सोनी एक बहुआयामी व्यक्तित्व रखते हैं, आप न केवल एक सफल बिजनेसमैन हैं, बल्कि आर्ट ऑफ लिविंग के एक कुशल शिक्षक, योग प्रशिक्षक और मर्म चिकित्सा प्रशिक्षक भी हैं। आज से श्रीडूंगरगढ़ लाइव पर प्रतिदिन पाठकों से रूबरू हुआ करेंगे।

हारे वही जो लड़ा ही नही – 5 सत्संग

विपरीत समय मे विजय के 7 सुत्र

संकल्प
सहयोग
साधना
स्वध्याय
सत्संग
सेवा
समर्पण

सत्संग
सत्य का साथ ही सत्संग
सार्थक धार्मिक परिचर्चा व भजन ही आम बोलचाल मे सत्संग
ये भी सकारात्मक ऊर्जा संवृद्धि मे सहायक होते है।
हर वक्त सत्य का साथ ही शाश्वत सत्संग हो सकता है।
मन ,वचन ,कर्म से सत्य का आराधन है सत्संग
सत्य यम (दूसरो के साथ आदर्श व्यवहार)का मुख्य अंग
सत्यप्रतिष्ठायां क्रियाफलाश्रयत्वम्
पातंजलि -सत्य की प्रतिष्ठा से सब कार्य सध जाते है।
सत्य के संग की राह कठिन व लम्बी अवश्य पर सुफलता निश्चिंत करती है।
सत्य के संग रहना जीते जी मोक्ष प्राप्ति होता है।
अष्टावक्र गीता –
मुक्तिमिच्छसिचेत्तात विषयान्विषवत्त्यज। क्षमार्जवदयातोषसत्यं पीयूषवद्भज ॥२॥
क्षमा, दया ,सरलता ,संतोष और सत्य ही मोक्ष -मुक्ति है।
जब भी हम सत्य के साथ तब हमे परिणाम की चिंता नहीं ,वर्तमान मे बने रहते है और यही मुक्ति है।
सत्संग ईश्वर के सानिध्य मे रहना सरीखा है।
सत्संग ज्ञान से भक्ति तक की यात्रा है।
हमारा संग जैसा है वैसा ही हमारा चरित्र भी ह़़ोता है।
सत्संग केवल श्रवण मात्र से कल्याण की विषय वस्तु नही।
सत्संग के मार्ग पर चलने से ही कल्याण सम्भव ।
सत्य को ना जानकर अपराध करने वालो से सत्य को जानकर गलत कार्य मे लीन होने या उदासीन रहने वाले बड़े अपराधी होते है ।
संकल्प को सहयोग-साधना व स्वध्याय से सम्पूर्ण किया,
पर सत्य का रास्ता छोड़ देने से सभी साधन व्यर्थ होगे।
सत्य से ही सफलता सुफलता मे बदलने वाली है ।
सत्य ही कर्म के फल के प्रभाव को तय करने वाला है।
संकल्प के लिये सहयोग मिला ,साधन व साधना भी जुटे।
स्वध्याय से कर्म भी हुये पर सत्य की संजीवनी बिना मिली सफलता ना दीर्घ होती है ना ही संस्कारी हो सकती है।
सत्य ही वो एक मात्र औषधि है जो संकल्प का सुपरिणाम तय करती है ,निश्चय ही आपका सत्संग इसमे बड़ी भूमिका निभाने वाला है ।
बहुधा सत्य के संग के अभाव मे भौतिक संसाधनों तो जुट जाते है ,पर खुशी -शांति – आनंद नही होता और ये सभी तथाकथित सफलता के संसाधन शरीर ,परिवार व समाज को अधोगति मे ही धकेलते है ।
सत्संग सफलता का प्राण है।
सत्संग संकल्प सिद्धि का सुफल (सुंदर -कल्याणकारी )है।
प्रयोग –
जीवन की हर सफलता को निष्पक्ष निर्णायक बनकर विजुलाइज करे,
मिली सफलता से परिवार समाज देश का भला हुआ क्या ?
सम्बंधित लोगो के चेहरे पर निश्छल मुस्कान रहती है ना ?
नकली खुशी से धोखा तो नही खा रहे है ?
आने वाली पीढ़ी मे संस्कार सम्पन्नता तो है ना ?
आपकी सफलता से समाज -देश की उन्नति हुई है ना  ?
ये मनन – चिंतन नित्य या समय समय पर व्यवसाय की बैलेंस सीट की तरह मिलाते रहे तभी पीढी दर पीढी यह सफलता संस्कार बनकर आपका आलिंगन करती रहेगी ।नही तो याद रहे जगत सेठ के वंशज आज कहां है किसे भी पता नहीं।
स्वध्याय से संकल्प की सिद्धि सुनिश्चित है , स्वध्याय से प्राप्त निधि – सिद्धि -विभुति सुफलता जो सत्संग से सजी है को शाश्वत रखने के लिये कैसे सदुपयोग करे अगले भाग मे उस पर संवाद करेंगे।साथ ही बात सत्य के बिना अर्जित संसाधनों की शुद्धि कैसे हो , उस पर भी संवाद करेंगे।
आपको हमारा प्रयास कैसा लगा ,अवश्य बताये ये गुरू -परमशक्ति की तरह प्रेरणा देता है ।

मंगल हो

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