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इतिहास के पन्नो से… सेवा के संस्कारों से ओतप्रोत–श्री हजारीमलजी बिन्नाणी

श्रीडूंगरगढ़ लाइव 31 मई 2023।प्रिय पाठकों,
श्रीडूंगरगढ़ जनपद की कतिपय दिलचस्प ऐतिहासिक जानकारियां श्रीडूंगरगढ़ के साहित्यकार, पत्रकार एवं इतिहासविद डाॅ चेतन स्वामी हमारे साथ नियमित साझा कर रहे है।


मोमासर बास के हजारीमलजी बिन्नाणी श्रीडूंगरगढ़ शहर के सामाजिक जन में अग्रणी थे। कोई भी सामाजिक काम होता तब यह कहा जाता कि हजारीमलजी को पूछो। हजारीमलजी का जन्म सन 1901 में हुआ। बिन्नाणी मूलतः तो बीकानेर से हैं,पर श्रीडूंगरगढ़ में बसने के लिए हजारीमलजी के पिता नारायणचंदजी बिन्नाणी रिड़मलसर से आए।
कलकत्ता में बिन्नाणी परिवार की गद्दी बहुत प्राचीन बताई जाती है। हजारीमलजी जूट-तम्बाकू की आढत का काम करते थे। पूर्वी पाकिस्तान में भी व्यावसायिक काम था। उस समय आप जूट के बड़े व्यापारियों में गिने जाते थे। सन 1962 में आप ढाई लाख मण जूट का कारबार करते थे। सन 1960 में आपने स्टेशन रोड पर सार्वजनिक कुए का निर्माण कराया। 1960 में ही आपने अपनी तीन पट्टा जमीन बालभारती स्कूल को भेंट की तथा स्कूल के निर्माण में भी सहयोगी दानदाता रहे। आपको धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का बहुत शौक था। गौपाल गौशाला– श्रीडूंगरगढ़ पुस्तकालय जैसी संस्थाओं के प्रति आपका बेहद आत्मीय भाव रहता–आगे बढकर सहयोग करते और ऐसी सार्वजनिक संस्थाओं को आर्थिक मदद करने में भी खुले मन से आगे रहते। स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस के कार्यक्रमों में सदैव आप उच्च पदाधिकारी के रूप में मौजूद रहते। तत्कालीन समय की राजनीति में पक्ष-विपक्ष दोनों दलों के लोग बिन्नाणीजी में अपनी आस्था व्यक्त करते। वे निरपेक्ष व्यक्ति थे। उनके यहां महाराजा करणीसिंहजी आते तो कांग्रेस के वरिष्ठ जन भी उनसे आशीर्वाद लेते। वे नगर के निर्विवाद व्यक्ति के रूप में प्रसिद्ध थे। अपने द्वारे पर आए व्यक्ति की हर संभव मदद करते-ना नहीं करते। शिक्षा से बहुत प्रेम था। सन 1982 में इक्यासी वर्ष की उम्र में देवलोक गमन कर गए। हजारीमलजी के चार पुत्र–लालचंदजी-शिवरतनजी-तुलसीरामजी-इन्द्रचंदजी हुए। पौत्र रामकिशनजी लुधियाना में,रामेश्वरजी इंदौर में,रतनजी-इंदौर में तथा प्रदीपजी-जयपुर में व्यवसायरत हैं।

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