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इतिहास के पन्नो से….गौमाता भंडारा गौशाला समिति, श्रीडूंगरगढ़

श्रीडूंगरगढ़ लाइव…23 मई 2023।प्रिय पाठकों,
श्रीडूंगरगढ़ जनपद की कतिपय दिलचस्प ऐतिहासिक जानकारियां श्रीडूंगरगढ़ के साहित्यकार, पत्रकार एवं इतिहासविद डाॅ चेतन स्वामी हमारे साथ नियमित साझा कर रहे है।

गौमाता भंडारा गौशाला समिति, श्रीडूंगरगढ़

कालूबास के पक्के जोहड़ की आगोर में बना गौमाता भंडारा कुछ ही अर्से पहले बना था। कालूबास के ही कुछ समाजसेवी लोगों के अथक परिश्रम से इसकी स्थापना हुई। प्रारम्भ में बेसहारा गोधन को घेरकर इकट्ठा किया जाता और उन्हें सनातन शमसान भूमि के निकट प्रति दिन दलिया तैयार कर खिलाया जाता। फिर इस गौमाता भंडारा को विस्तार देकर गौशाला का रूप दे दिया गया है। वर्तमान में तीन सौ पच्चास से अधिक गौधन की सेवा हो रही है-यहां। बारहों मास यहां गौधन को प्रातः दलिया दिया जाता है। यहां स्वयंसेवक युवकों का एक दल बना हुआ है जो तत्परता से प्रातः सेवा के लिए उपस्थित हो जाता है।

युवकों का सेवाभाव देखकर मन प्रसन्न हो जाता है। इस सेवा को देखकर हमें हमारे श्रीडूंगरगढ़ पर गर्व होता है। गौमाता भंडारा में लगभग डेढ सौ ऐसे बछड़े हैं,जिनकी आयु तीन चार माह तक की है। इन वर्षों में हमारे ग्रामीण क्षेत्र में एक अलग ही पशु क्रूरता का नजारा दिखाई देता है। दस दिन और पन्द्रह दिन के बछड़े को रात्रि में गुप-चुप छोड़ दिया जाता है। चाहे मरे- चाहे जिए। ऐसे आवारा बछड़ो को गौ माता भण्डारा की टीम का ममत्व मिलता है।

श्रीडूंगरगढ़ के जिन क्षेत्रों में कुए हैं। जहां उन्नत खेती के कारण बर्ष भर में लगभग पच्चीस लाख रुपये की दो फसलें होती हैं,वहां बछड़े को पालने का बोझ नहीं सह सकते। हर किसान चार से पांच लाख का चारा बेचता है, पर अपनी ही गाय के जाए को भारी बोझ समझता है। हां बछिया को बड़े प्रेम से पालता है। एक शब्द है “पशुवृत्ति” जिसका तात्पर्य होता है–केवल स्व हित को सोचना। ऐसे लोगों के लिए दीनदयाल टिड्डी भेजता है–कोरोना भी।

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