श्रीडूंगरगढ़ लाइव…09 मई 2023। प्रिय पाठकों,
श्रीडूंगरगढ़ जनपद की कतिपय दिलचस्प ऐतिहासिक जानकारियां श्रीडूंगरगढ़ के साहित्यकार, पत्रकार एवं इतिहासविद डाॅ चेतन स्वामी हमारे साथ नियमित साझा कर रहे है।
बीकानेर देहात रजिस्टर सन 1940 के अनुसार श्रीडूंगरगढ़ में उस समय 96 गांव थे, जिसमें से पांच गांव गैर आबाद थे। उस समय गांव सहित कृषि भूमि का सबसे बड़ा रकबा (क्षेत्र) सेरूणा का था। सेरूणा गांव के रकबे में 104000 बीघा भूमि थी, जबकि दूसरे स्थान पर मोमासर था। मोमासर के रकबे में 73823 बीघा भूमि थी। तीसरे स्थान पर पूनरासर का रकबा (60319 बीघा) था। किसी भी गांव के लिए आदर्श स्थिति बावनी की हुआ करती थी। बावनी से तात्पर्य था, गांव का रकबा बावन हजार बीघा विस्तृत हो। जितना बड़ा रकबा, उतनी ही अधिक कृषि की आमद। बावनी से अधिक भूमि होने का मतलब होता कि उस गांव का पूर्व काल में कोई जागीरदार प्रभावशाली रहा है। सेरूणा और मोमासर दोनों ही जगहों के जागीरदार बीदावत राठौड़ थे। 1940 में मोमासर की आबादी पुरूष 1310 तथा महिलाएं 1233 थीं। इस तरह से कुल आबादी 2543 लोगों की थी और मोमासर के घरों की संख्या 569 थी। 1940 में यह गांव खालसे (बीकानेर राज्यसात) था। खालसे तो इससे काफी पहले ही हो चुका था। मोमासर के ठाकुरों पर महाराजा गंगासिंह की सदैव नाराजगी रही। श्रीडूंगरगढ़ तहसील का समूचा क्षेत्रफल 3020 वर्ग किलोमीटर है।










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