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इतिहास के पन्नो से….मोमासर और जैन धर्म

श्रीडूंगरगढ़ लाइव…24 अप्रेल 2023।प्रिय पाठकों,
श्रीडूंगरगढ़ जनपद की कतिपय दिलचस्प ऐतिहासिक जानकारियां श्रीडूंगरगढ़ के साहित्यकार, पत्रकार एवं इतिहासविद डाॅ चेतन स्वामी हमारे साथ नियमित साझा कर रहे है।

मोमासर और जैन धर्म

श्रीडूंगरगढ़ तहसील के सेरूणा, इंदपालसर, ऊपनी, बिग्गा,तोलियासर तथा मोमासर गांव प्राचीन हैं और इन सभी गांवों में जैन धर्म के अनुयायी ओसवाल रहा करते थे। इस क्षेत्र में खरतरगच्छ का प्रभाव अधिक था। इन जगहों पर जैन साहित्य की अनेक श्रेष्ठ रचनाएं लिखी गईं। इस क्षेत्र के प्राचीन जैन साहित्य को बीकानेर के अद्भुत विद्वान श्री अगरचंदजी नाहटा ने इक्ट्ठा किया जो आज भी अभय जैन ग्रंथालय-बीकानेर में सुरक्षित है।
जब तेरापंथ का उदय हुआ, तब इस क्षेत्र के अधिकांश ओसवाल तेरापंथी हो गए। तेरापंथी बनने की प्रक्रिया प्रारंभ में धीमी रही।
मोमासर में जतियों के प्राचीन उपासरे इस बात के प्रतीक थे कि यहां के ओसवाल प्रारंभ में यति परम्परा के अनुयायी थे।
तेरापंथ के आचार्यों में चतुर्थ आचार्य श्री जीतमल जी के मोमासर के उम्मेदमलजी संचेती अनुयायी बने। कुहाड़ परिवार मोमासर का सबसे प्राचीन परिवार बताया जाता है। पटावरी बाहर से आकर बसे। वैसे जहां सरदारशहर बसा है वह पुराना गांव भी पटावरियों का था। राजकार्य करनेवाली जाति पटावरी थी। ये खरतरगच्छ के जिनदत्त सूरी के शिष्य थे। इसलिए मोमासर में एक दादाबाड़ी भी है ।
कहते हैं संवत 1935 व 1938 में दो तेरापंथी साध्वियों के मोमासर में चातुर्मास्य करने के बाद यहां अधिकांश ओसवाल तेरापंथी हो गए।आचार्य के रूप में प्रथम पदार्पण आचार्य मघवागणि का संवत 1941 में हुआ। उनका शुभ आगमन यहां दो बार हुआ। ये तेरापंथ के पंचम आचार्य थे। सप्तम आचार्य डालगणि का भी यहां दो बार सुआगमन हुआ। अष्टम आचार्य श्री कालूगणि सात बार यहां पधारे। आचार्य श्री तुलसी ने तो अपार कृपा की वे यहां सोलह बार पधारे, उनके साथ महाप्रज्ञ जी भी पधारे। यहां के श्रावकों की समर्पण निष्ठा से सभी आचार्य प्रभावित हुए। तेरापंथ धर्म संघ में उन्नति के वाहक बनने वाले कितने ही सहृदय जन इस मोमासर के रहे हैं। इस गांव ने अपनी पहचान राष्ट्रीय स्तर पर बनाई है।

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