श्रीडूंगरगढ़ लाइव…22 अप्रेल 2023।
धीरदेसर पुरोहितान
श्रीडूंगरगढ से 23 किलोमीटर दूर सरदारशहर सड़क मार्ग पर पड़ता है–धीरदेसर पुरोहितान। श्रीडूंगरगढ़ तहसील के अधिकांश गांव गोदारा जाति के जाटों द्वारा बसाए हुए हैं, पर धीरदेसर को सांभर क्षेत्र के धीरा भूकर ने बसाया। सांभर क्षेत्र में भूकर जाति के जाटों के पच्चीस गांव थे। धीरदेसर को धीरा भूकर ने मिंगसर सुदी दूज संवत 1639 को इसे बसाया। धीरा यहां से पहले भूकरेड़ी से आया था। पहले यह धीरदेसर भूकरान ही था। कहते हैं इस गांव के धीरा का एक साथी जो टूसिया जाति का जाट था, उसने जसनाथजी की प्ररेणा से कूआ खोदने को कहा। कुआ सात दिन में खुदकर तैयार हो गया। भूकरों के बाद यह गांव भाटी राजपूतों के पट्टे में रहा था।
संवत 1760 में बद्रीदास राजपुरोहित नोखा तहसील के देसलसर से यहां आए। बीकानेर राज्य ने जागीर में उन्हें यह गांव सौंपा। आजादी से पूर्व तक यह जागीर उन्हीं के परिवार के पास रही। इसलिए यह धीरदेसर पुरोहितान कहलाया। बद्रीदास देस दीवान के पद पर थे। यहां के जोरसिंह राजपुरोहित सरदारसिंह के समय राजदूत थे।
यह वही गांव है- जहां नागपुर से चलकर आए खाखी बाबा ने तपस्या की थी। कहते हैं उन्हीं का पुनर्जन्म महाराजा गंगासिंह जी के रूप में हुआ था।
इस गांव में ठाकुर जी का एक ऐतिहासिक मंदिर है। बीकानेर के एक राजा को पुत्र की प्राप्ति होने पर उसने मंदिर में चंदन काष्ठ से बने छोटी गेंद के आकार के मनकों की माला पूरे मंदिर को पहनाई। उस समय इस माला का वजन सवा बारह मण था। यह मैसूर से बन कर आई। लोभी लोग इसके मनके तोड़ तोड़ कर ले गए, फिर भी यह माला आज भी मंदिर के चौफेर पहनाई हुई है। शेष बची माला भी किसी आश्चर्य से कम नहीं है। इसी गांव के नानूराम मेघवाल श्रीडूंगरगढ़ पंचायत समिति के प्रधान रहे। यह धार्मिक भावना वाला गांव है। यहां बहुत अच्छे ज्ञानी-ध्यानी, सतसंगी लोग हुए, और हैं।










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