श्रीडूंगरगढ़ लाइव…21अप्रेल 2023।प्रिय पाठकों,
श्रीडूंगरगढ़ जनपद की कतिपय दिलचस्प ऐतिहासिक जानकारियां श्रीडूंगरगढ़ के साहित्यकार, पत्रकार एवं इतिहासविद डाॅ चेतन स्वामी हमारे साथ नियमित साझा कर रहे है।
रूपालसर के बीका जागीरदार
रूपालसर (श्रीडूंगरगढ का प्राचीन नाम) के जागीरदार किशनसिंघोत बीकों में संवत 1727 में आसकरण सिंह बीका के पुत्र फतहसिंह पांचू गांव छोड़ कर यहां रूपालसर आ बसे। उन्हें यह गांव पट्टे में प्राप्त हुआ। उन्होंने यहां गांव के निकट स्थित ताल में एक कच्चे जोहड़ का निर्माण करवाया जिसका नाम फतह सागर तालाब नाम रखा गया। कालान्तर में इसी तालाब को नागर मल बाजोरिया रतनगढ निवासी ने पक्का बना दिया।जिसमें आज ड्रेनेज का गंदा पानी डाला जाता है।
ठाकुर फतहसिंह ने अपने पिता आसकरण सिंह की याद में तालाब के किनारे एक छतरी भी बनवाई जो आज भी मौजूद है। बताया जाता है कि बाजार के मध्य स्थित मढी के कुए का निर्माण भी उन्होंने ही करवाया था। इसीलिए सैकड़ों वर्षों से रूपालसर की गणगौर मढी के कुए पर फेरे लेती है।
श्मशान की छतरी के खम्भे पर अवस्थित शिलालेख में संवत 1772 अंकित है। बीकों की वंशावली में भी उनके द्वारा करवाए गए निम्न निर्माणों का उल्लेख है। संवत 1939 में जब नया श्रीडूंगरगढ बसना प्रारंभ हुआ तो बीकानेर राज द्वारा यहां के बीकों से रूपालसर खालसे कर इस परिवार को सूरजड़ा गांव पट्टे में दे दिया। सूरजड़ा कोलायत तहसील का गांव है। उस समय मोहबतसिंह के चार पुत्र 1 – रणजीत सिंह-2-उमेदसिंह, 3- मोतीसिंह, 4- रिड़माल सिंह पट्टेदार थे। एक पुत्र जेठमालसिंह यहीं रह गए। वर्तमान में यहां सभी बीका उन्हीं के वंशज हैं।










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