श्रीडूंगरगढ़ लाइव…25 मार्च 2023।भगवान हड़ताल पर हैं! चौंक गए न….
आप डर रहे हैं, आप को किसी अनहोनी का खौफ खाए जा रहा है, बिल्कुल सच है। आपका डर वाजिब है, आप ही नहीं भगवान की हड़ताल से पूरा त्रिलोक हिल गया है। संविधान मौन है और विधान ने आंखों पर पट्टी बांध रखी है। भक्त गौलोक वासी हो रहे हैं, लेकिन सवाल भगवान की हड़ताल का है, किसकी जुर्रत आग से खेले।
उफ! तौबा-तौबा सपने भी न आए ऐसे मुकाबले की बात। लोकतंत्र में धरती के भगवान का जमीर जाग गया है। वह अक्सर जागता रहता है।जब मर्जी में आता है, आला खूंटी पर टंग जाता है। धरती के भगवान का पद्मासन हिलने वाला नहीं है। उन्होंने प्रण कर लिया है, तूने दो का सिर फोड़ा हम कईयों को यमपुर पहुंचा कर दम लेंगे।
हमारा लोकतंत्र बेमिसाल और बेहिसाब है। यहां सुविधा के अनुसार नियम बनाए और तोड़े जाते हैं। अपना मुलक बारहों महिने ,चौबीस घंटे और आठों याम चुनावियाना मोड में रहता है। जिसमें सभी डूबे रहते हैं फिर भगवान हों या भक्त। उपर वाले चर्तुभुजी चक्रशुदर्शनधारी, पितांबरधारी, कमल नयनों वाले भगवान से तो बेचारा भक्त निपट लेगा क्योंकि उनकी फीस बहुत अधिक नहीं है। उनकी नाराजगी दूर करने भक्तों के पास बेहद आसान तरीका है। बस..प्रभु को मंदिर में पहुंच मनपसंद की मिठाई खिलाई, भोग चढ़ाया और चरणों में लेट सब नारियल फोड़ा वह खुश हो गए। सारी गलतियां माफ और रास्ता साफ। लेकिन धरती के भगवानों की नाराजगी दूर करना मुश्किल है क्योंकि उन्हें मोटी फीस चाहिए। उनके सामने झुकना होगा क्योंकि वह अपनी शपथ तोड़ हड़ताल पर हैं लेकिन भक्त को हड़ताल करने का अधिकार नहीं है वह तो सर्वदा सेवक है और रहेगा क्योंकि लोकतंत्र के सबसे निचले पायदान पर वह दबा, कुचला बेचारा है। वह केवल सांस छोड़ना जानता है, हड़ताल वह भी भगवान की हड़ताल में उसे सांस लेने का कोई अधिकार नहीं है।अगर वह हड़ताल पर आ आए तो क्या होगा। यह तो सरकार और भगवान ही बता सकते है।
हड़ताल पुराण अजब मोड़ पर पहुंच गया है।सत्ता भगवान के श्रीचरणों का नमन करे या तमाशा यूं बरपता रहे और भक्त इस यज्ञ में प्राणों की आहुति देकर अपनी निष्ठा प्रदर्शित करता रहे क्योंकि संविधान मौन है और विधान ने आंखों पर पट्टी बांध रखी है। जैसे गंगा गंदगी साथ बहने की आदि हैं वैसे ही अपन का लोकतंत्र बह रहा है। बस..चुपचाप देखते रहिए…कुछ न कहिए न कहवाईए। यह चुप-चाप, छाप-छूप का मंत्र है।मानस मर्मज्ञ तुलसीदास जी ने लोकतंत्र की नब्ज रामराज्य में ही पकड़ ली थी, तभी तो उन्होंने लिख दिया था समरथ के नहिं दोष गुसाईं….
भगवान चाहे कुछ भी करे सरकार आंखों पर पट्टी बांध लेती है। बचपन में हमने एक कहानी पढ़ी थी मंत्र। वह कहानी कोई भगवान पढ़ता तो शायद हड़ताल न करता। जादूगर इन भगवानों का चरण बंदन कर लेगा तो सब कुछ माफ और साफ हो जाएगा। लेकिन जिन भक्तों की जिंदगी हमेंशा के लिए विष्णु लोकवासी हो गयी है उनकी फरियाद कौन सुनेगा। उसके लिए तो सिर्फ एक ही अदालत है उपर वाले की। अपना भी लोकतंत्र अजब और गजब है। जहां चाहे, जब चाहे डमरु बजा जमूरे का खेल शुरु कर दीजिए। आपको कोई रोकने-टोकने वाला नहीं है क्योंकि हमारा विधान और संविधान हड़ताल का हक देता है। आप किसी बेगुनाह के मौत के दोषी क्यों न हों लेकिन आप पर मुकदमा नहीं चलेगा क्योंकि आप भगवान हैं, इसलिए विधि से परे हैं। यह लोकतंत्र है जिसकी लाठी उसकी भैंस। फिलहाल जादूगर का जादू काम नही कर रहा है, हड़ताल पुराण कब तक चलेगा पता नही है। इसी उम्मीद में बोलिए…”आर्यावर्ते भारतखंडे राजस्थान प्रांते, जादूगर राज्ये धरती भगवान पुराणे,अष्ट दिवसे हड़ताल अध्याय समाप्त…”
बोलो! बांके बिहारी लाल की जय….










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