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करे योग…. रहे निरोग… राजू हीरावत के साथ..

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श्रीडूंगरगढ़ लाइव…11 फ़रवरी 2023।श्रीडूंगरगढ़ लाइव के सभी पाठकों के लिए इम्युनिटी सिस्टम को मजबूत करने के लिए योग के आसन, प्राणायाम की पूरी जानकारी के सहित सही व सटीक विधि स्वास्थ्य कॉलम में प्रस्तुत की जाएगी। ये कॉलम पाठकों के बेहतर स्वास्थ्य के लिए राजू हीरावत, योग व मेडिटेशन स्पेशलिस्ट द्वारा प्रस्तुत की जाएगी। आप दी गई जानकारी के लिए अपनी जिज्ञासा व्हाट्सएप नम्बर 9414587266 पर मैसेज कर जान सकेंगे।

दंडासन

दंडासन योग में वर्णित प्राथमिक योगासन है। संस्कृत शब्द दंडासन, दंड – लाठी ,आसन – मुद्रा होता है। अंग्रेजी में इसे “Staff Pose” के नाम से भी जाना जाता है।

इस आसन का नाम दंड यानी लाठी के ऊपर रखा गया है। इस आसन की मदद से साधक का शरीर गहन और जटिल आसनों के लिए सक्षम बनता है।

विधि
1.इस आसन का अभ्यास करने के लिए जमीन पर चटाई बिछाकर नीचे बैठ जाए।
2.हाथों को बगल में रखे और दोनों पैरों को एक दूसरे के समांतर सामने फैला दे।
3.पैरों की उँगलियों को ऊपर की दिशा में इंगित करे ,तथा अपने मेरुदंड (रीढ़ की हड्डी) को सीधा रखे।
4.कूल्हों पर दबाव बनाये रखे और सिर को थोड़ा ऊपर उठाकर एक सीधी रेखा में रखे।
5.अपनी एड़ियों पर दबाव डालकर तलवों को सीधा करे। कंधों को ढीला छोड़े और हाथों को फर्श पर आराम करने दे।
6.इस स्थिति में अपने धड़ को सीधा बनाये रखे। पैरों को रिलैक्स करते हुए जाँघों को फर्श पर दबाये।
7.अभ्यास करते समय श्वास गति सामान्य बनाये रखे। कम से कम १ मिनट के लिए मुद्रा में बने रहे ,और वापस सामान्य अवस्था में आ जाए।
8.दंडासन का अभ्यास करते समय आप अपना ध्यान मेरुदंड के निचले हिस्से पर केंद्रित कर सकते हैं।

सावधानियां
1.पेट या पीठ की गंभीर बीमारी या चोट होने पर इस आसन का ना करे।
2.अभ्यास करते समय शरीर पर अत्यधिक दबाव या खिंचाव न डाले।

लाभ
1.इस आसन का अभ्यास आपकी रीढ़ की हड्डी को पूरी तरह प्रभावित करता है।
2.इसके नियमित अभ्यास से पीठ की मांसपेशिया सुदृढ़ और मजबूत बनती है।
3.यह छाती का विस्तार करता है तथा फेफड़ों को निरोगी बनाये रखता है।
4.ये कंधों को मजबूत कर उन्हें फ़ैलाने में मदद करता है।
5.अगर आप नियमित रूप से दंडासन का अभ्यास करते है, तो कुछ ही दिनों में आप अपनी शारीरिक मुद्रा में सुधार महसूस कर सकते है।
6.ये पाचनतंत्र की कोशिकाओं को मजबूती प्रदान करता है। पेटदर्द ,गैस बनना ,कब्ज ,वात,अम्लता,भोजन का न पचना ,थकान महसूस करना , अतिनिद्रा ,अनिद्रा ,मंदाग्नि ,अत्यधिक तनाव ,ठीक से श्वास ना ले पाना इत्यादि समस्याओं में लाभदायक है।
7.इसके अलावा कटिस्नायुशील तथा अस्थमा जैसी बीमारियों का चिकित्सकीय रूप से समाधान करता है।
8.यह आसन मस्तिष्क की कार्यक्षमता को बढ़ाता है।
9.दिमाग को शांत बनाये रखता है तथा अनेक मानसिक परेशानी या तर्क वितर्क से मस्तिष्क की सुरक्षा करता है।
10.ध्यान साधना करने के लिए या मन को एकाग्रित करने के लिए ये सरल आसन के रूप में जाना जाता है।
11.अगर आप नियमितता और एकाग्रता के साथ इसका अभ्यास करते है ,तो ये आपको गहन शांति का अनुभव कराता है।
12.इस आसन का अभ्यास व्यक्ति में धैर्य ,स्थिरता ,और एकाग्रता जैसे भावों को उजागर करता है।

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