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श्रीडूंगरगढ़ लाइव…11 फ़रवरी 2023।प्रिय पाठकां,
श्रीडूंगरगढ़ रा मानीजेड़ा अर लोकलाडला साहित्यकार “सत्यदीपजी” आपणै सागै रोजीनां मारवाड़ी में बतावळ करसी।

 

सच्चिदानंद

बात नै पिछाणां तो साव स्सोरो लखावै इण तत रो भाण। पण इणनै समझणो घणो दोरो हुवै, जै समझ पड़ भी ज्यावै तो संभाळ राखणो तो इतो अबढो कै केंवणो ही कांई। अर जै धारणो भी ताबै किंया नै किंया आ ही ज्यावै तो पछै सांभणो तो साव मुस्कल हुवै।क्यूं कै सांभणियो बरतण साव छोटो अर संभाळ सवाई, पाव री हांडी में जद सवा सेर उरीजै तो आंधण अर रांधण दोवूं रो नास हुयां सरै।हांडी बधरै, धान ढुळै अर चूल्हो बुतै। सच्चिदानंद में तीन सबद है सत, चित अर आनंद। ऐ तीनूं ब्रह्मनद सरुप हुवै। तीन न्यारी निरवाळी बगती धारावां है ग्यान हिंवाळै सूं आतम जमी पर पसरी सी। जद तीनूं भेळप धारै तो तिरबेणी संगम रो भान बणै। सत नै समझां तो लखावै, जको सासवत अर परम है। जको निराकार हुंवता थकां ही साकार सरुप है। कठै ही नीं होंवतो ही सगळै सैमूंडै ऊभो है। बो अनभो अर अनूभूती दोवां में हाजर है। जको दीठ में अदीठ अर अदीठ में भी अनहद रो सागड़दी है ।तिरकाळ में भी समाईज्योड़ो है। अनहद सूं आगै भी जको महाशून्य है,अर संपूर्ण है बो ही सत कथीजै, सत ही हुवै।
अब बात चित री देखां तो साम्हीं आवै, भरम सूं मुगत हुयोड़ो मनभाव ही चित हुवै। अंतस री अनूभूती ने सगळा भाव भुलायनै परम, रस रो सुवाद चाख जिंया समझे,पण उणरो वरणाव करणै में खुदनै सामरथवान नीं हो पावै। अलख रो अनभै साच्याणी वरणातीत ही हुवै। आं दोवूं धारावां रो बेग अंतस में परगटै तो जकी तिरबेणी बणै अर जीव नै सांयती री छोळां सूं असनान करावै बो ही आनंद हुवै। बीन तिरबेणी नै ही आपां सच्चिदानंद री संग्या सूं समझ सका हां।
चित रो मतलब सामान्य अनुभव सूं खाली मन नै समझ लियो जावै।पण गूढ भाव सूं अनुभूत कर्यो जावै तो चित कीं हटपरो दरसण अर अध्यात्म रो सांवठो चिंतन ही अंतस रै ग्यान दरसण रो सुध सरुप बणै बो ही आपणो चित हुवै,मन तो लगाम बायरो घोड़ो हुवै।कद साधक साधना नै संभार ऊंडै अंतस उतरै सत री लगाम अर साधना रै पागड़ा पग धरै। अर भटकाव नै भूल खुद नै साधलै तो मर सूं चित रै मारग री जातरा रा मारग खुलै। सत रो अर चित रो मेळ जद हुवै तो आनंद रो परस खुदोखुद पनपै। साचलो सत चित आनंद परम रो परस करावै।
इति आनंद।
सत्यदीप।

 

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