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आपणी बात… आपणी भाषा म… धर्म री सामाजिकता

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श्रीडूंगरगढ़ लाइव…08 फ़रवरी 2023।

धरम री सामाजिकता

उपनिषद एक बात बतावै-
तेजसीव तमो यत्र विलीनं भ्रांति कारणम्।
अद्वितीये परे तत्वे निर्विशेषेर्भिदाः कुतः
आ बात आपांनै समाज सेवा रै पेटै समझणी घणी जरूरी है।
अब जिंया च्यानणै में अंधारो एकदम सांवटीज आंख्यां सूं ओझळ हुज्या। उणी भांत जी मांय रा बेहम भी परमतत री चितार हुयां पसवाड़ो देंवता देर को लगावै नींद। हमें सामाजिक व्यवस्था के दायरे में अब समझणो ओ है। कांई अंधार मरग्यो, ना ओ भरम हुवै, कै अंधारो मरग्यो। बस चरूड़ च्यानणो जठै हुयो अंधारो न्हास लियो। बो खतम को हुयो नीं। इण सारु घणो जरूरी है, कै आपां आतमा री धुंई सदा सैचनण अर जगरमगर राखां। अंतस रा खीरा नै कदै कजळाजण को देवां नीं।
जै अंतस जगती जोत मगसी पड़ी अर खीरा ठंडा होयनै राख रळग्या तो अंधारो पाछो पग रोप आ ऊभसी।
इण च्यानणै नै आपां समाज अर सगळा रही भलाई रै भाव में किंया परोटां। मिनख
पणों कदै एकलखोरड़ो को हुवै नीं।बो तो भायां री भूप में जीवणै नै सुख रो सार समझै। भेळप भाव री मूळ जड़ हुवै सगळा रो सुख आपणो सुख, सगळा रो दुःख आपणो दुख। अंधारै में आंख्यां मींच खुणियो तका परो आपरो पेटो पूरती करणै रा भाव सवारथ री खेती करै। लोभलालच रो पाणी अर क्रोध री खात जिकी निपज देवै बा कळेस रो खळो जचावै।गुरुघम री जमी पर जद ग्यान री बिजणी सूं हेत बिजीजै तो हित करणै री फसलां निपजै। सगळा रो हित सोचणो, हित करणै सारु खपणो ही साची सामाजिकता रो भाव हुवै। आ चितार चरूड़ राख्या ही अंधारै रा बीज पनपै कोनी। ग्यानी पुरखां साच ही कथी है।
संगच्छध्वम् संगवद्धवम्
भेद नै भुलाय आपां सामाजिक व्यवस्था नै सुचारू करणै रो पण लेंवां अर सामाजिक समष्टि में आपणै व्यष्टि भाव री भैळप करें, तो ही आपां अंधारै रै राज रो सामनो कर पास्यां। पीढी दर पीढी आपां तो बस सवारथां रै जाळ में अळूझ्या अंधारै रै मारग बग रेयां हां। अंधारै री फैंट में आपां आपूं परी देहळी माथै ऊभा भरम रै चोरावै ऊभा तकावां कै जावणो किण मारग है। मगसो च्यानणो हियै ढूकतां ही अंतस चेतावै, भाई च्यानणो मारग झाल आगै बध
संभळ्यां अंधारै रै ठडै नै ढाबणै में सफल होस्यां। ओ सामाजिकता रो धरम हुवै अर आ ही धरम री सामाजिकता हुवै।
इति आनंद।

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