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इतिहास के पन्नो से…. पूनरासर

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श्रीडूंगरगढ़ लाइव…08 फ़रवरी 2023 ।प्रिय पाठकों,
श्रीडूंगरगढ़ जनपद की कतिपय दिलचस्प ऐतिहासिक जानकारियां श्रीडूंगरगढ़ के साहित्यकार, पत्रकार एवं इतिहासविद डाॅ चेतन स्वामी हमारे साथ नियमित साझा कर रहे है।

 

पूनरासर की स्थापना एवं नामकरण

पूनरासर प्राचीन गांव है। यह बीकानेर राज्य के गुसांईसर चीरे का गांव रहा है। महाराजा रतनसिंह के काल में यह माजीसा जैसलमेरीजी के पट्टे का गांव था तथा इसकी रेख २००० की थी। बाद में महाराजा गंगासिंह के समय इसे राज्य के प्रधानमंत्री भैंरुसिंहजी के पट्टे में दे दिया गया। बीकानेर राजघराने का इस मंदिर के प्रति श्रद्धाभाव रहा है।
कहा जाता है कि श्री पूनरासर गाँव की स्थापना लगभग सात सौ वर्ष पूर्व पूनरा नामक गोदारा जाट ने की। यह सारा क्षेत्र गोदारा पट्टी रहा है। गोदारों ने 1444 गाँवों की स्थापना की ऐसी किंवदंती चलती है। इसी क्षेत्र में लाघड़िया एवं शेखसर गोदारों की राजधानी थी। राव बीका के आगमन से पूर्व यहां गोदारा जाटों का ताकतवर परगना था।
पूनरा की पुत्री लाखणी निकट के कालू गाँव में मीठूजी ज्याणी को ब्याही हुई थी। अकाल पड़ने के कारण वह अपने धन-पशु को लेकर पीहर पूनरासर आ गई। यहां उसने अपनी माँ से बसने के लिए जगह मांगी। माँ ने एक पूरा डेहर उसे दे दिया। भाभियों के ताने पर लाखणी ने अपने श्वसुर देवरों के प्रयास से नया कुआ खुदवाया। बेटी के यहां बसने पर पूनरा ने यहां से अन्यत्र अपना वासा कर लिया। इस प्रकार कालू से आए ज्याणी परिवार ने यहां वासा ले लिया। उसी ज्याणी परिवार में पालोजी हुए।
पूनरासर के बारे में कहा जाता है कि यह गाँव पूर्व में कई बार बसा तथा कई बार उजड़ा। निकट के खेतों में इसकी थेह कई जगह प्राप्त है।

ज्याणियों की संक्षिप्त जानकारी

पूर्ण सत्यता के बारे में तो कुछ कहा नहीं जा सकता पर मान्यता रही है कि ज्याणी जाट पूर्व में पारीक ब्राह्मण थे। उनके पूर्वज गंगादास पारीक गंगोत्री से उत्तर प्रदेश के बावड़ियागढ आए, यहाँ से यह परिवार डेह नागौर में आ गया। गंगादास के पुत्र पुरुषोत्तम ने दो विवाह किए। पहली पत्नी रामी ब्राह्मण पुत्री जांगलू की थी तथा दूसरी पत्नी सोनी सहू जाट थी और वह मेड़ता के कालू गाँव की थी। यह विवाह सं. 1102 में हुआ। अर्थात 973 वर्ष पूर्व। सोनी से चार पुत्र हुए। जीवराज, हंसराज, ईसरराज एवं जोखा जीवराज के पुत्र ज्याणी, हंसराज के हुड्डा, ईसरराज के ईसराम, जोखा के झूरिया हुए। संवत 1151 में ये जातियां प्रकट हो गई। इन चारों पुत्रों ने जाणेता (नागौर) में सम्मिलित कुआ खुदवाया। जीवराज के तीन पुत्र उग्रा, पदम और जसपाल हुए। पदम तथा जसपाल ने सं. 1155 में 12 गाँवों की कांकड़ बाढ (काट) कर बाडेला गाँव बसाया। यह गाँव उन्होंने केऊ के जाखड़ों से लड़ाई लड़कर नया बसाया। पूनरासर के ज्याणी पदमसी के वंशज हैं। संवत 1507 में ये कालू से पूनरासर आ गए तब से यहां इनकी सोलहवीं पीढी बताई जाती है।

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