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श्रीडूंगरगढ़ लाइव…3 फरवरी 2023 ।प्रिय पाठकां,
श्रीडूंगरगढ़ रा मानीजेड़ा अर लोकलाडला साहित्यकार “सत्यदीपजी” आपणै सागै रोजीनां मारवाड़ी में बतावळ करसी।

                      कै हुवै करणै जोगो

जगत में जीवणो है, तो कीं ना कीं तो करणो ही पड़सी। कर्यां बिना तो पार पड़णी साव स्सोरी कदैई को हुवै नीं। पण अठै ठाडी दिक्कत तो आ हुवै, कै करणै जोगो कै है। संसार है, दो धारावां में बगती नदी। एक धारा सवारथ री एक धारा परमारथ री। अब सवारथ कितो अर परमारथ कितो आ ठाडी दिक्कत आवै ।
जींवतै जी रै लाग घणी हुवै तो सवारथ रा पगोतियां भी चढणो पड़ै। नीं तो जगत में व्यौहार को चालै नीं। सगळा सवारथ पाप को हुवै नी। अठै बात परमारथ री सोचा तो ठा लागै, कै गिरस्ती धरम पाळणो जगती में पैलो धरम सासतरां थरप्यो है। गिरस्त धरम नै पाळै अर बाकी सगळां री निसवारथ भाव सूं सेवा करै तो तेतीस कोटि देव पूजा रो फळ मतोमती मिलै आ जूना सासतरां कथी है। अठै गति-मुगति री बिड़द बांचता केई ग्यान- छमकै में भाखै, कै सो कीं छोड -छाडनै मुगति मारग नै झाल। फेर एक फोड़ो आय ऊभै। सगळा जै सो छोड परा रोही रो रूंख झालसी तो पोखसी कुण। भागवत गीता में भी भगवान करम करणो बो भी सावचेती सूं करणो, “योगः कर्मषु कौशलः” री ठाडी सीख दीवी है।
ग्यान री दो धारावां री उळझण अर मन री गताघम मिनख मन में दो चीजां निपजावै। एक तो संकळप अर दूजो संकरमण ।संसकार चेतै रो प्राणी विचारां री समिधावां में कर्म रो साकळ्य अर साधना रै घी री आहुती सूं होमायत कर समाज रै कल्याण रो साखी बणै तो संकरमण नै धारणियो आपरै सवारथां रै रथ असवार होयनै आखी जगती रै नितनूंवो सेको रांध रोग, डर अर खैनास रा ताणां ताणै। अठै जैन दरसण जिया -जूण सारु एक बात साव साची कथी है।
न हि पापं कतं कम्मं, सज्जु खीरवं मुच्चति
डहन्तं बालमन्वेति, भस्मच्छन्नोव पावको,
इण रो अरथाव इण भांत कैईजै।
जिंया सुवावड़ो दूध हाथोंहाथ को जमे नीं बिंया ही कर्योड़ो पाप करम बेगो सो आपरो फळ को दसरसावै नीं। बो तो भोभर में ओट्यै छाणै रै बास्तै री गळाई जगतो रेवै। मतलब ओ हुवै, कै पाप लारो लियो राखै ।
अब बिच्यारणै री बात तो आ हुवै, कै छेकड़ आपां नै करणो कै है। सुख रै संसार नै सिरजणो है! कै खैनास रो रचाव सवारथां में डूब आंख मींच करणो है।
ऊँ आनंद।
सत्यदीप

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