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श्रीडूंगरगढ़ लाइव…1 फ़रवरी 2023 ।

प्रिय पाठकां,

श्रीडूंगरगढ़ रा मानीजेड़ा अर लोकलाडला साहित्यकार सत्यदीपजी आपणै सागै रोजीनां मारवाड़ी में बतावळ करसी।

—– चित साधणो है—–

पांच तत रो बण्यो ओ आपणो डील उणनै चलावै सांस। सांस सांस में आपणो जीवणो हुवै, अर एक चीज और है, बो है मन। मन इसी ढाळ चालै कै बगतो बगतो तिसळै। ओ तिसळणो ही संसारी बंध हुये।
योगवासिष्ठ में इणनै किं इण भांत कथीज्यो है-

चित्तमेव हि संसारो रागादिक्लेशदूषितम् ।
तदेव तैर्विनिर्मुक्तं भवान्त
इति कथ्यते ॥

इण रो भाव ओ है, कै चित्त यानि मन जद रागां में रहने पाँच कळेसां सूं खोटो हुवै , उण बगत मन ही संसार लखावै।

जद मन आं पाँच कळेसां सूं घिरज्यावै, तो बो ही संसाररूप में दीसै । अर जद आपां आपणै मन नै इण पाँचां कळेसां सूं मुगत करनै सुद्ध कर साधना में रंगीजस्यां तो ओ नश्वर संसार दिखणो बंद होवै। अंतर ग्यान रो च्यानणो अंतस में फूटसी। अंतस में जद च्यानणो पसरसी तो ग्यान रो झरणो झरसी ।
इण बात नै भगवान श्रीकृष्ण गीता में इण भांत बतावै
ज्ञान लब्धा परां शांतिमचिरेणाधिगच्छति।
इण सारु जरुरी है साधना।साधना सारु सधणो पड़े। गौण जरूरी हुये चलायमान चंचळ चित रै कैंकाण नै सदबुधि री जेवड़ी सूं बाधनै राखा।

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