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इतिहास के पन्नो से…

श्रीडूंगरगढ़ लाइव…27 जनवरी 2023 । प्रिय पाठकों,
श्रीडूंगरगढ़ जनपद की कतिपय दिलचस्प ऐतिहासिक जानकारियां श्रीडूंगरगढ़ के ही साहित्यकार, पत्रकार एवं इतिहासविद डाॅ चेतन स्वामी हमारे साथ नियमित साझा करेंगे।

रीड़ी का गढ बनाया किसी ने -भोगा किसी और ने

रीड़ी गांव भैरोंसिंह तंवर के पट्टे में था। उनके पूर्वजों ने ही इसका निर्माण करवाया था। भैरोंसिंह महाराजा गंगासिंह की फौज के बड़े अधिकारी थे। पर गंगनहर निर्माण के समय किसी बात से अनबन होने पर महाराजा ने भैरोंसिंह को देश निकाला दे दिया। उन्हें चौबीस घंटे में रीड़ी का गढ खाली करने का आदेश हुआ।
बाद में रीड़ी का गढ गंगासिंह जी ने ड्योढी वाले राजवी भैरोंसिंह राठौड को दे दिया। सन 1930 को जगमाल सिंह की मृत्यु होने पर तेजसिंह रीड़ी का स्वामी बना। रीड़ी के शासक जगमाल सिंह ने विख्यात ग्रन्थ *वेलि क्रिसन रुकमणि री* की टीका लिखी थी। रीड़ी के राजवी भैरोंसिंह के बहुत से किस्से प्रचलित रहे हैं।भैरोंसिंह ने रीड़ी के निकट अपने नाम पर एक नया गांव बसाया, जिसका नाम भैरोंसिंह का बास रखा गया ।अल्प काल में उनके पुत्र अभयसिंह की मृत्यु होने पर उन्होंने उसकी याद में इस गांव का नाम अभयसिंहपुरा कर दिया। इस तरह एक ही गांव के दो नाम प्रचलित हो गए। आज रेवेन्यू रिकार्ड में गांव का नाम अभयसिंहपुरा ही है जबकि बोलचाल में इसे भैरोंसिंह का बास कहते हैं। भैरोंसिंह ने अपने खर्चे से इस गांव में एक शानदार कुआ तथा एक ठाकुरजी का मंदिर बनवाया। मंदिर पर शिलालेख लगा हुआ है। पुत्र की याद में कुआ करवाया तथा बेटी कुशल कंवर की याद में मंदिर बनवाया। इस मंदिर की सेवार्थ आज से ठीक अस्सी वर्ष पहले श्रीडूंगरगढ के कालूबास के एक स्वामी परिवार को जमीन देकर वहां बसाया गया। वह परिवार आज भी उस प्राचीन मंदिर की सेवा करता है।

 

चेतन स्वामी

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