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श्रीडूंगरगढ़ लाइव….26 जनवरी 2023। प्रिय पाठकों, जैसा कि आपको विदित है, श्रीडूंगरगढ़ जनपद की कतिपय दिलचस्प ऐतिहासिक जानकारियां श्रीडूंगरगढ़ के साहित्यकार, पत्रकार एवं इतिहासविद डाॅ चेतन स्वामी हमारे साथ नियमित साझा करेंगे।

 

 

श्रीडूंगरगढ़ के संस्थापक का ननिहाल झंझेऊ

बीकानेर महाराजा डूंगरसिंह जी ने बड़े मन से श्रीडूंगरगढ़ को बसाया। सैकड़ों चौराहों के साथ जयपुर की तर्ज पर इस शहर को बसाया। श्रीडूंगरसिंह जी इस तहसील से विशेष नेह नाता था। उनका मूल ननिहाल आपको जानकर आश्चर्य होगा कि श्रीडूंगरगढ़ तहसील का झंझेऊ गांव था ।
श्रीडूंगरगढ़ तहसील का ही एक गांव है–सांवतसर। सांवतसर तंवर राजपूतों का बड़ा ठिकाना था। ये ग्वालियर के तंवर थे। बीकानेर के महाराजा श्री कर्णसिंह के साथ ग्वालियर के केशवसिंह ने अपनी पुत्री का विवाह किया था। कर्णसिंह ने ससुर को सांवतसर की जागीर दे दी।
बहुत पीढियों बाद सांवतसर के तेजसिंह का पुत्र जीवराजसिंह झंझेऊ के कल्याण सिंह के दत्तक चला गया। झंझेऊ के कल्याण सिंह की एक पुत्री का विवाह बीकानेर के महाराजा श्रीलालसिंह जी के साथ हुआ था। उन्हीं लालसिंह जी के बड़े पुत्र महाराजा श्रीडूंगरसिंह जी थे और उनके छोटे भाई महाराजा गंगासिंह जी थे। अतः दोनों महाराजाओं का ननिहाल सांवतसर भी था और झंझेऊ भी था।
बीकानेर के महाराजा बनने पर अपने मामा जीवराज सिंह को रीड़ी की जागीर प्रदान की गई तथा जीवराज सिंह को राजा की उपाधि प्रदान की। जीवराज सिंह के छोटे भाई को लिखमादेसर गांव जागीर में मिला।

 

चेतन स्वामी

 

 

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