
श्रीडूंगरगढ़ लाइव न्यूज।3 मई 2020।
कोरोना महामारी ने लोगों ने अपनी जिंदगी में कई अहम बदलाव कर दिये हैं. कोरोना से बचाव के लिये सरकार की ओर से जारी गाइडलाइन की पालना के साथ ही व्यक्ति अब खुद भी इसके बचाव के तरह-तरह के तरीके ढूंढने लगा है. इसी के चलते अब लोग परपंरागत तरीकों की ओर फिर से लौटने लगे हैं. ऐसा ही कुछ हुआ है भारत-पाकिस्तान की सरहद पर रेगिस्तान में बसे जैसलमेर जिले में. यहां दशकों बाद एक बार फिर ऊंटों पर सवार होकर बारात दुल्हन को लेने गई.
रेगिस्तान के जहाज ऊंट पर बरसों पहले एक गांव से दूसरे गांव जाना आम बात थी. घर-घर में आवागमन का यह साधन आम हुआ करता था. आधुनिक साधनों के अभाव में बारातें भी ऊंटों के टोळों पर जाती थी. लेकिन समय के साथ सब बदल गया. ऊंट की उपयोगिता कम होती गई और उसे लगभग बिसरा दिया गया. लेकिन कोरोना काल में अब एक बार फिर कम खर्चे में ऊंट सुरक्षित आवागमन का साधन बन रहा है. इसकी बानगी जैसलमेर जिले के पोकरण इलाके में देखने को मिली है. ऊंटों पर गई यह बारात इलाके में चर्चा का विषय बनी हुई है. इस बारात की तस्वीरें सोशल मीडिया में जमकर वायरल हो रही हैं.
मामला पोकरण इलाके के बांधेवा गांव से जुड़ा है. बांधेवा स्थित महेचो की ढ़ाणी निवासी गणपत सिंह के पुत्र महीपालसिंह की शादी बाड़मेर जिले के केसुबला की रहने वाली युवती के साथ हुई है. दुल्हे महिपाल के परिजनों और समाजसेवी आनंदसिंह राठौड़ ने बताया कि बाहर से आए मेहमानों की वजह से कोरोना संक्रमण न फैल जाएण् इसके लिए महिपाल सिंह और उसके पिता ने विशेष सतर्कता बरतने का फैसला किया.
बुजुर्गों की यादें हुई ताजा
महिपाल बारात में घोड़े की जगह ऊंट पर बैठकर लड़की के घर पहुंचे. उनके साथ ही अन्य बाराती भी ऊंटों पर ही दुल्हन के घर पहुंचे. बारात के लिये 15 ऊंटों का इंतजाम किया गया. उन पर सवार होकर 30 बाराती दुल्हन के घर पहुंचे. एक ऊंट पर दो बाराती सवार हुये. इससे जहां बारात का परपंरागत स्वरूप सामने आया वहीं कोरोना प्रोटोकॉल की भी पालना की गई. ऊंटों पर महीपाल के परिजनों को महज 12 हजार रुपए खर्च करने पड़े. करीब 50 साल बाद इलाके में ऊंटों पर निकली बारात को देखकर बुजुर्गों को अपनी शादी की यादें ताजा हो गईं.










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