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26 जून : भारत के इतिहास का वो काला दिन जब देश में इमरजेंसी लगी थी

श्रीडूंगरगढ़ लाइव 26 जून 2023। आज ही की तारीख को 26 जून 1975 की सुबह। ऑल इंडिया रेडियो पर जो सबसे पहली आवाज आई वो देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की थी। उन्होंने कहा था,  ‘राष्ट्रपति ने आपातकाल की घोषणा कर दी है। इसमें घबराने की कोई बात नहीं है।’

आज देश में इमरजेंसी लगने को 48 साल पूरे हो चुके हैं। इंदिरा गांधी ने एक इंटरव्यू में कहा था- जब मैंने इमरजेंसी लगाई, एक कुत्ता भी नहीं भौंका। 

इमरजेंसी लगने से पहले क्या हुआ था, जाने पूरी कहानी…

 इमरजेंसी की नींव बना इलाहाबाद हाईकोर्ट का एक फैसला,

इमरजेंसी की पटकथा लिखी गई थी 12 जून 1975 को । इंदिरा गांधी के खिलाफ रायबरेली से चुनाव लड़ने वाले राजनारायण ने याचिका दायर करते हुए इल्जाम लगाया कि गांधी ने चुनाव में सरकारी मशीनरी का दूर6किया है जिसके फलस्वरूप इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा ने इस दिन इंदिरा गांधी के लोकसभा चुनाव को रद्द कर दिया था और 6 साल के असवैधानिक पदों के लिए अयोग्य घोषित कर दिया।

24 जून को इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई जहाँ जस्टिस कृष्णा अय्यर ने फैसला सुनाया कि जब तक कोर्ट में केस है तब इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनी रहेगी लेकिन वे किसी भी संसदीय चर्चा और बिल पर वोटिंग नहीं कर पायेगी।

कोर्ट का यह फैसला ना ही इंदिरा गांधी को रास आया ना ही उनके समर्थकों को।

 अगले दिन 25 जून को जयप्रकाश नारायण ने नई दिल्ली के रामलीला मैदान में सरकार के खिलाफ बड़ी रैली बुलाई थी। तब देश में महंगाई और भ्रष्ट्राचार के मुद्दे पर लोगों में गुस्सा पनप रहा था। जयप्रकाश पूरे देश में घूम-घूमकर सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे थे।

25 जून की सुबह बंगाल के मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर रे जो दिल्ली आए हुए थे उनको इंदिरा गांधी ने फोन करके अपने आवास 1 सफदरजंग रोड पर मिलने के लिए बुलाया।उनके आने के बाद गांधी ने उनसे 2 घण्टे तक देश के हालातों पर वार्ता की।

रे ने शाह कमीशन के सामने अपने बयान में बाद में बताया था कि जब वह पहुंचे तो इंदिरा गांधी ने उनसे कहा कि उन्हें कई रिपोर्ट्स मिली हैं। इनमें कहा गया है कि देश बड़ी मुसीबत में फंसने वाला है। सब तरफ अव्यवस्था फैली हुई है।

बिहार और गुजरात की विधानसभाएं भंग की जा चुकी हैं। विपक्ष सिर्फ आंदोलन पर उतारू है। देश मे कानून व्यवस्था बिगड़ने के डर है। जयप्रकाश नारायण की रामलीला मैदान में होने वाली सभा को लेकर भी एक इंटेलिजेंस रिपोर्ट दिखाई। रिपोर्ट में कहा गया था कि जयप्रकाश नारायण की योजना पूरे देश में विरोध प्रदर्शन का आह्वान कर एक सामानांतर प्रशासन चलाने की है। वे कोर्ट से लेकर पुलिस और सेना से लेकर सरकार की बात न मानने को कहेंगे।

इमरजेंसी की जांच के लिए बनी शाह कमीशन के सामने सिद्धार्थ शंकर रे ने यह खुलासा किया कि इंदिरा गांधी उनसे पहले भी दो-तीन मौकों पर कह चुकी थी कि भारत को ‘शॉक ट्रीटमेंट’ की जरूरत है। ठीक उसी तरह जब एक बच्चा पैदा होता है और उसमें कोई हरकत नहीं होती, तब उसमें जान लाने के लिए शॉक दिया जाता है। इंदिरा का कहना था कि देश में एक बड़ी शक्ति का उभरना जरूरी है।

इंदिरा ने 2 घंटे चली बातचीत में कहा कि अमेरिकी प्रेसिडेंट रिचर्ड निक्सन की हेट लिस्ट में मैं सबसे ऊपर हूं। मुझे डर है कि CIA की मदद से मेरी सरकार ना गिरा दी जाए। ठीक वैसे ही जैसे अमेरिका ने चिली में जनरल ऑगस्टो पिनोचेट का तख्तापलट किया।

इंदिरा गांधी का अमेरिका को लेकर यह डर बेवजह भी नहीं था। नवंबर 1971 इंदिरा गांधी अमेरिका के दौरे पर गई थीं। 1971 में भारत-पाक युद्ध से एक महीने पहले उनकी यात्रा का मकसद था कि अमेरिका पाकिस्तान में हथियार ना भेजे। पर निक्सन ने ऐसा करने से मना कर दिया।

एक अमेरिकी डोकुमेंट साल 2022 में ‘डॉक्यूमेंट्स ऑन साउथ एशिया, 1969-1972′ सामने आया । जिसमें 5 नवंबर की सुबह 8:15 से 9:00 बचे सुबह के बीच प्रेसिडेंट NSA और ह्वाइट हाउस के चीफ ऑफ स्टाफ के बीच बातचीत है। इस तारीख पर इंदिरा गांधी अमेरिकी दौरे पर थीं। निक्सन कहते हैं, ‘दिस इज द पॉइंट शी (इंदिरा गांधी) इज ए बिच । ‘ इस पर NAS किसिंजर कहते हैं, ‘वेल द इंडियन्स आर बास्टर्ड एनीवे। दे स्टार्टेड द वॉर एनीवे।’ इंदिरा गांधी को यह बात पता थी कि रिचर्ड निक्सन उनसे नफरत करते हैं।

25 जून दोपहर को बंगाल के मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर रे ने इंदिरा को धारा 352 लगाने का सुझाव दिया

इंदिरा गांधी की सारी बातें सुनने के बाद सिद्धार्थ रे अपने कमरे में आकर भारत और अमेरिकी संविधान को पढा और शाम 3:30 बजे फिर 1 सफदरजंग रोड पहुंचे और इंदिरा गांधी को समझाते हुए कहा कि भारतीय संविधान की धारा 352 बाहरी और आंतरिक अव्यवस्था के समय इमरजेंसी लगाने की छूट देता है। रे ने साफ किया बाह्य और आतंरिक अव्यवस्था कैसे अलग है।

उदाहरण के लिए 1971 में भारत-पाक युद्ध के समय लगाए गए इमरजेंसी के बारे में इंदिरा को समझाया। बताया कि कैसे युद्ध एक देश के लिए बाहरी खतरा है। और जो देश के अंदर परिस्थितियां हैं उसके लिए आंतरिक इमरजेंसी लगाना होगा।

सिद्धार्थ रे ने गांधी को राष्ट्रपति से मिलने की बात कही और स्वयं इंदिरा गांधी के साथ राष्ट्रपति भवन जाने के लिए तैयार हुए।

25 जून की शाम को ही राष्ट्रपति को इमरजेंसी लगाने के लिए मना लिया गया..

शाम 5:30 बजे इंदिरा गांधी और सिद्धार्थ शंकर रे तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद से मिले और उन्हें सारी बाते बताई। राष्ट्रपति ने उन्हें इमरजेंसी के दस्तावेज पहुंचाने को कहा।

दोनों वापिस इंदिरा गांधी के आवास पहुंचे और इंदिरा के सचिव पीएन धर द्वारा इमरजेंसी की घोषणा के दस्तावेज तैयार कराए । धर खुद ही ये दस्तावेज लेकर राष्ट्रपति भवन पहुंचे। अब तक रात हो चुकी थी। इधर इंदिरा गांधी ने निर्देश दिया कि यह बात मंत्रिमंडल को सुबह 5 बजे बताई जाए।

25 जून रात 12 बजे ही विपक्षी नेताओं समेत लाखों लोगों को गिरफ्तार करने की प्लानिंग तैयार

सिद्धार्थ शंकर रे इंदिरा गांधी को उनके सुबह दिए जाने वाले भाषण को लिखने में मदद की। एक दूसरे कमरे में आर के धवन, संजय गांधी और ओम मेहता जो संसदीय राज्य मंत्री थे। वो सुबह गिरफ्तार किए जाने वाले विपक्षी नेताओं की लिस्ट बना रहे थे। रात के 3 बजे सिद्धार्थ रे उनके घर से फ्री होकर निकले।

ओम मेहता ने उन्हें बताया कि अगले दिन दिल्ली के अखबारों की बिजली काटने और देश भर की अदालतों को बंद रखने का बंदोबस्त कर लिया गया है। रे ने इस बात का विरोध किया और वो वापिस इंदिरा गांधी से मिले इस पर इंदिरा ने कहा कि किसी अखबार की बिजली नहीं काटी जाएगी ना कोई कोर्ट बंद होगा। इंदिरा गांधी के मुंह से इतना सुनने के बाद ही रे वहां से निकले। जो कि बाद में झूठ साबित हुआ।

26 जून सुबह 6 बजे पूरा मंत्रालय सदमे में था…

सुबह के 6 बजे थे। 1 अकबर रोड पर इंदिरा गांधी के ऑफिस में 8 कैबिनेट मंत्री, 5 राज्य मंत्री मौजूद थे। बाकी 9 कैबिनेट मंत्री तब दिल्ली में नहीं थे। उन सबको इमरजेंसी की घोषणा की एक- एक कॉपी और विपक्ष के उन नेताओं की लिस्ट दी गई जो गिरफ्तार हुए थे। इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी की घोषणा की और ऐसा करने की वजहें बताई। वहां मौजूद सभी के लिए ये किसी सदमे की तरह था। वहां कोई चर्चा भी नहीं हुई। प्रधानमंत्री के पास इस बात का कोई जवाब नहीं था कि आधी रात को ये इतना बड़ा कदम क्यों उठाया गया। पूरी मीटिंग सिर्फ 30 मिनट में खत्म हो गई।

 25 जून 1975 से 19 जनवरी 1977 तक भारत में विपक्षी नेताओं समेत 1 लाख लोगों को जेल में डाल दिया गया

इमरजेंसी लागू रही। मेंनटेनेंस ऑफ इंटरनल सिक्योरिटी एक्ट यानी मीसा कानून और डिफेंस ऑफ इंडिया एक्ट के तहत करीब एक लाख से ज्यादा लोगों को जेल में डाला गया।पर अक्सर सवाल उठाया जाता है कि देश में इसका किसी ने विरोध क्यों नहीं किया। इंदिरा गांधी ने खुद कहा कि जब मैंने इमरजेंसी लगाई, एक कुत्ता भी नहीं भौंका था।

सभी विपक्षी नेताओं को जेल में डाल दिया गया या उन्हें हाउस अरेस्ट कर लिया गया। आंदोलन कर रहे जयप्रकाश नारायण से लेकर मोरारजी देसाई, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवानी, अरूण जेटली, जॉर्ज फर्नांडीस, चंद्रशेखर जैसे शीर्ष विपक्षी नेता शामिल थे। 25 जून की आधी रात को ही सभी राज्यों के मुख्य सचिव की गिरफ्तारी का आदेश दे दिया गया था।

जयपुर की महारानी और ग्वालियर की राजमाता विजयराजे सिंधिया को भी इमरजेंसी के दौरान तिहाड़ जेल में डाल दिया गया था। 65 साल की गायत्री देवी को फॉरेन एक्सचेंज और स्मगलिंग के जुर्म में गिरफ्तार कर लिया गया।

वहीं, राजमाता सिंधिया पर पैसों की हेरा-फेरी का आरोप लगाकर गिरफ्तार कर लिया गया था। 26 संगठनों को एंटी-इंडिया कहकर उन पर बैन लगा दिया गया था। इसमें RSS से लेकर कम्युनिस्ट पार्टी मार्क्सिस्ट शामिल थे।

प्रेस पर पाबंदी लगा दी गई। हर अखबार के दफ्तार में सेंसर अधिकारी बैठा दिया गया। उसके देखने के बाद ही कोई भी खबर छपती थी। सरकार विरोधी समाचार छापने पर गिरफ्तारी हो जाती थी। 23 जनवरी 1977 तक सब ऐसे ही चलता रहा जब तक लोकसभा चुनाव की घोषणा नहीं हो गई।

26 जून का ये दिन भारतीय इतिहास का काला अध्याय था जब संविधान से भी खिलवाड़ किया गया।

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