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कबीर जयंती पर विशेष… कबीर का चिंतन दार्शनिक न होकर दार्शनिकता के बोध का चिंतन है

श्रीडूंगरगढ़ लाइव 04 जून 2023। आज कबीर जयंती है।

समझे कबीर के मायने…

काशी कसिये ज्ञान को मरिये मगहर जाई
सच को कस के बोलिए तब कबीर कहाई।
एक फक्कड़ी अंदाज और सच को प्रत्यक्ष करने वाले सामान्य से असामान्य तक के सफर का एक अलग अकेला पथिक कबीर और समय को पछीटता हुआ, धोता मांजता हुआ और खुरदरे पन से आभामय बनाता हुआ संत जिसमें खुली
किताब सी बानी लिए अपना घर फूंकने की मंशा लिए सबके सामने से गुजरता है। क्या कहते हैं कबीर,
“कबीरा सोई बीर है जो जाने पर पीर”
कबीर जब बोलते हैं या कबीर को या उनके भावों को पढें तो साफ होता है कि उनकी वैचारिक भावनाएं सताओं को भयभीत करती है, धर्मान्धता के भीतर खौफ पैदा करती है। कबीर ही एकमात्र ऐसा समय का चिंतक होकर हर समय उभर कर सामने आता है जो इंसान की मुक्ति और श्रम को साधता हुआ समय को सुघड़ बुनकर बन तार तार संभाल कर बुनता है। कबीर कह जाता है सीधा सपाट सच कि
वही माटी की गागर होती
सो भरके मैं आई।
सो मिट्टी के हम तुम होते
छूत कहां लिपटाई।
कबीर अपने समय से भावी समय को भी साधने के विकल्प देता है।
सब रग रबाब तन
विरह बजावै नित।
ना कोई सहन सके
कै सांई के चित।।
कबीर का चिंतन दार्शनिक न होकर दार्शनिकता के बोध का चिंतन है। जो समय को सुघड़ हाथों से पछीटता हुआ उजलापन देता है।

“सत्यदीप”

श्रीडूंगरगढ

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