श्रीडूंगरगढ़ लाइव 04 जून 2023।श्री श्याम सोनी एक बहुआयामी व्यक्तित्व रखते हैं, आप न केवल एक सफल बिजनेसमैन हैं, बल्कि आर्ट ऑफ लिविंग के एक कुशल शिक्षक, योग प्रशिक्षक और मर्म चिकित्सा प्रशिक्षक भी हैं। आज से श्रीडूंगरगढ़ लाइव पर प्रतिदिन पाठकों से रूबरू हुआ करेंगे।
अपनो से अपनी बात -2
क्या ईश्वर है.. ?
हमारे ईश्वर कहां है..?
क्या वो हमारे लिये काम कर रहे है..? आइये इन सभी सवालों के जवाब जानने का प्रयास करते है।
एक उदाहरण से समझते है, हमने कुछ मुल्य देकर एक वस्तु या सेवा खरीदी। यों देखा जाये तो क्रय – विक्रय सम्पूर्ण हो गया, परन्तु सही मे लेन देन अब प्रारम्भ होता है, जब, जब हम वस्तु या सेवा का उपभोग करेंगे। विक्रेता से सेवादार के प्रति एक संवेदना प्रेषित करते है, अगर प्रोडक्ट उत्तम है तो सकारात्मक संवेदना और सेवा से शिकायत है तो नकारात्मक संवेदना। यह संवेदनाये अक्सर हम दोस्तो, परिवार या सोशल मीडिया पर भी डाल सकते है, जिससे स्थूल रूप मे भी विक्रय उपरांत भी उस संवाद का असर हम पर बना रहता है ।
उस संवेदना के लिये वो व्यक्ति जिम्मेदार है या हमारा प्रोडक्ट या सेवा या हम..?
इसके जवाब से ही हमारे ईश्वर का स्वरूप दृश्यवान होता है जो हमारे कार्मिक प्रबंधन पर निर्भर करता है। ये कार्मिक प्रबंधन स्वत: ही ईश्वरीय कार्य करता है, Product बेचने पर काम सम्पूर्ण नही होता है प्रारम्भ होता है। आपका प्रोडक्ट जब जब प्रयोग मे आयेगा, तब तब आपके लिये एक वाइब्रेशन बनेगी, वो सकारात्मक है या नकारात्मक आपको प्रभावित करेगी ही। कार्मिक स्तर पर तो होना ही है साथ स्थूल स्तर पर भी आपके प्रोडक्ट की माउथ पब्लिसिटी आपकी मांग को बढा भी सकती है, गिरा भी सकती है, इससे सस्ता सटीक विज्ञापन कोई हो नही सकता पर यह आप खरीद नही सकते ( वैसे आजकल फेक रिव्यू से यह खरीदा भी जा रहा है, पर यह भी एक बार ही कार्य करता है ) ये आपको बना भी सकता है और बिगाड़ भी सकता है।
साथियो वापिस कार्मिक स्तर पर चलते है, आपकी वाणी, आपका कर्म, आपकी सोच सभी कुछ प्रोडक्ट ही तो है, ये सब पर सकारात्मक या नकारात्मक प्रभाव डालते ही हैै। यह अनुकुल रहे तो सकारात्मक संवेदनाये कृपा बरसाती है। जीवन मे भौतिक,शारीरिक,मानसिक, आध्यात्मिक प्रगति अशेष अवसर पर बऱसती है, इसे ही हम भाग्योदय या ईश्वरीय कृपा मान सकते है। यहां ईश्वर कौन हुआ..? वो व्यक्ति जिसने आपके लिये शुभेच्छा भेजी, हां कुछ हद तक यह सही भी है, परन्तु इसकी गहराई मे जायेंगे तो इसमे ईश्वरीय हेतु हमारा प्रोडक्ट (वाणी, कर्म, सोच ) ही बना है ।
इसके विपरीत घटना भी हमारे जीवन मे घटती ही है। सब कुछ प्रयत्न करने पर भी सुख – शांति नही आती, शायद हमारा प्रोडक्ट नकारात्मक संवेदना प्रचार हमे प्रतिफल मे दे रहा है। एक बार फिर देखे तो स्थूल स्तर पर उस नकारात्मक संवेदना देने वाले को हम दोषी ठहरा सकते है पर आंख बंद कर मनन करे तो माध्यम हमारा वो प्रोडक्ट ही है। हम ही हमारे ईश्वर है।
आपके सुविचारो संवाद का इंतजार रहेगा।










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