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इतिहास के पन्नो से… बालाजी के अनन्य भक्त

 

श्रीडूंगरगढ़ लाइव…28 अप्रेल 2023।प्रिय पाठकों,
श्रीडूंगरगढ़ जनपद की कतिपय दिलचस्प ऐतिहासिक जानकारियां श्रीडूंगरगढ़ के साहित्यकार, पत्रकार एवं इतिहासविद डाॅ चेतन स्वामी हमारे साथ नियमित साझा कर रहे है।

बालाजी के अनन्य भक्त
खाखी बाबा

श्रीडूंगरगढ के जो वयोवृद्ध लोग हैं, उन्हें यह नाम थोड़ा -थोड़ा याद है।चलो प्रबल हनुमत भक्त श्री खाखी बाबा का पुण्य स्मरण करते हैं।
खाखी बाबा नागपुर क्षेत्र के जागीरदार थे। कोई गलत काम हो गया तो मन में जबरदस्त ग्लानि हुई। जीवन से वैराग्य हो गया।गुरू से सलाह ली -क्या करूं? तब उन्होंने कहा -किसी निर्जल ( कम पानी) क्षेत्र में जाकर तप करो। वे घूमते-घूमते श्रीडूंगरगढ क्षेत्र में आ पहुंचे।चारों तरफ निर्जन, ऊंचे-ऊंचे टीले, पानी की नितांत कमी।इस से अधिक निर्जल क्षेत्र और कौन सा होगा?
उस समय तक श्री डूंगरगढ बसा हुआ नहीं था। उन्होंने गुसांईसर वाली थेह में हनुमानजी की मूर्ति स्थापित की और तपस्या करनी शुरू कर दी। उन्होंने निकट -पड़ोस में पांच हनुमत मंदिरों की स्थापना की। उनके बनाए हनुमान मंदिर पूनरासर हनुमान मंदिर से भी प्राचीन हैं। 1 -मणकरासर में पंचमुखी हनुमान मंदिर 2- धीरदेसर पुरोहितान में पचीस -तीस वर्ष तप किया ,वहां ऊंचे धोरे पर बालाजी का मंदिर है।धीरदेसर में उनके दर्शन करने के लिए महाराजा गंगासिंहजी के पिता आए और उन्होंने पुत्र की कामना की तो उन्होंने स्वयम ही पुत्र रूप मे जन्म लेने का वरदान दिया। लोक में यह बात बहुत प्रचलित है कि गंगासिंहजी, खाखी बाबा के अवतार थे।
उन्होंने तीसरा हनुमत मंदिर गुसांईसर गांव में बनवाया। चौथा डेलवां गांव में तथा पांचवा सहजरासर में।
खाखी बाबा दादूपंथ की एक शाखा खाखी में दीक्षित थे। अपने क्षेत्र में उनके चमत्कारों की बातें बहुत प्रसिद्ध है। डेलवां गांव के नागा बाबा से मिलने गए तो उन्होंने कमण्डल से पानी पिलाना शुरू किया तो न कमण्डल का पानी समाप्त हुआ और न ही खाखी बाबा की प्यास खत्म हुई । वे अपने तपस्या स्थल थेह में अपनी झौंपड़ी में रूप बदल लिया करते थे।आज भी लोग थेह वाले मौनी बाबा को उनका ही अवतार मानते हैं ।वे भी पच्चीस वर्षों से यहां उग्र तप कर रहे हैं।

 

 

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