
श्रावण शुक्ल पक्ष की उदया तिथि पंचमी तिथि को नागपंचमी का पर्व मनाने का विधान है। नागपंचमी श्रावण के महीने में पड़ने वाले महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। नागपंचमी के दिन नागों की पूजा करने का विधान है। नागपंचमी का ये त्योहार सर्प दंश के भय से मुक्ति पाने के लिये और कालसर्प दोष से छुटकारा पाने के लिए, राहु कृत पीड़ा से मुक्ति पाने के लिए मनाया जाता है। जानिए नाग पचंमी का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और कथा।
भारत में श्रावण शुक्ल पक्ष की पंचमी को, यानी कि आज के दिन लकड़ी की चौकी पर लाल चन्दन से सर्प बनाये जाते हैं या मिट्टी के पीले या काले रंगों के सांपों की प्रतिमाएं बनायी या खरीदी जाती हैं और उनकी दूध से पूजा की जाती है। कई घरों में दीवार पर गेरू पोतकर पूजन का स्थान बनाया जाता है। फिर उस दिवार पर कच्चे दूध में कोयला घिसकर उससे एक घर की आकृति बनाई जाती है और उसके अन्दर नागों की आकृति बनाकर उनकी पूजा की जाती है। साथ ही कुछ लोग घर के मुख्य दरवाजे के दोनों तरफ हल्दी से, चंदन की स्याही से अथवा गोबर से नाग की आकृति बनाकर उनकी पूजा करते हैं।
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नाग पंचमी का शुभ मुहूर्त
नाग पंचमी तिथि प्रारम्भ- 24 जुलाई दोपहर 2 बजकर 34 मिनट से
नाग पंचमी समाप्त: 25 जुलाई दोपहर 12 बजकर 3 मिनट तक।
नाग पंचमी को लेकर कई कथाएं प्रचलित है
किसी राज्य में एक किसान अपने दो पुत्र और एक पुत्री के साथ रहता था। एक दिन खेतों में हल चलाते समय किसान के हल के नीचे आने से नाग के तीन बच्चे मर गयें। नाग के मर जाने पर नागिन ने शुरु में विलाप कर दु:ख प्रकट किया फिर उसने अपनी संतान के हत्यारे से बदला लेने का विचार बनाया। रात्रि के अंधकार में नागिन ने किसान व उसकी पत्नी सहित दोनों लडकों को डस लिया। अगले दिन प्रात: किसान की पुत्री को डसने के लिये नागिन फिर चली तो किसान की कन्या ने उसके सामने दूध का भरा कटोरा रख दिया। और नागिन से वह हाथ जोडकर क्षमा मांगले लगी। नागिन ने प्रसन्न होकर उसके माता-पिता व दोनों भाईयों को पुन: जीवित कर दिया। उस दिन श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि थी। उस दिन से नागों के कोप से बचने के लिये इस दिन नागों की पूजा की जाती है। और नाग -पंचमी का पर्व मनाया जाता है।











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