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आपणी बात….आपणी भाषा म :सेवा इमरत भाव

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श्रीडूंगरगढ़ लाइव…14 मार्च 2023।प्रिय पाठकां,
श्रीडूंगरगढ़ रा मानीजेड़ा अर लोकलाडला साहित्यकार सत्यदीपजी आपणै सागै मारवाड़ी में बतावळ करसी।

सेवा इमरत भाव

मिनखां री आखी जियाजूण खाली जी नै भुळाय राखणै री जुगत में ही खरचीजै। अठै सो कीं जको साच को हुवै नीं बे ही साच दिखणै रो भरम गूंथै। अदीठ सपनो हुवो सगळो।जको सारथक है ही कोनी बो लखावै। उणरो लारो लियां मिनख मन डाफाचूक हुयो तड़बड़ै। तड़बड़ै जिंया तिस्सो मिरग तावड़ै री झर नै पाणी समझ।
आ दोड़ ही तो संसारी राग नै घड़ै, राग सूं चिप्योड़ो मन भूलै मारग नै।
जगत जिसो होवणो चाईजै बिसो हुवै कोनी। बस बो तोइच्छावां-कामनावां रो ठाडो पसारो भर हुवै। जद मन उण कामनावां नै ढाल समरपण में सांयती ढूंढै तो उणरो सुभाव सन्यासी बणै। उपनिषद इणनै इण भांत समझाणै री जुगत बतावै –
“”अखंडानन्दमात्मनम्
विज्ञाय स्वस्वरूपतः।
बहिरिन्तः सदानंदः
सास्वादनमात्मनिः।।

मिनखाजूण सिस्टी रै परम तत री एक लूंठी अर अनोखी देन है। जकी उण तत नै जाणनै -समझणै रै इधकारी बेटै रै रूप में पिरथी माथै आवै। तत नै जाणनै धारणै री
हूं उणनै कल्याण रो कारक भी बणावै अर ना ही बणावै ।ओ तो जाम्या पछै रा उणरा आचरण ही तै करै। खुद रै होवणै नै सारथक करनै अखंड आनंद सूं अंतस नै भिजोवै। आपरै मांयलै -बारलै समुच्चयन नै साधै। जद बो सगळा सारु ऐ भाव अंतस में जचावै, कै आ जकी सिस्टी है बा
बा म्हैं हूं बा म्हारो ही सरुप है। बो परम सूं सूंप्यै आनंद रो सवाद जितो आप लेवणै री इछ्या राखै, बितो ही दूजां नै देवणै रा भाव भी राखै।
, जीणो तो पल में फूटणियो बुदबुदो भर है। इणनै जै सासवत अर सनातन राखणो है तो सेवा रो धरम ही साधणो पड़सी। सावसाची है, कै समरपित अर सक्रिय सेवाकाल सदा साच री जाण साथै होवणै री हूंस ही तो कल्याण रो मारग बतावै।
साच रो अनभै सेवा सूं ही निपजे। सेवा रा भाव साच रै सैमुंहडै ल्यावै। गीता में भगवान श्रीकृष्ण बतावै –
न कर्तृत्वं न कर्मणि लोकस्य सृजति प्रभुः।
न कर्मफल संयोग स्वभावस्तु
प्रवर्तते ।।
मिनख रो सुभाव ही मिनख नै किणी करम नै करणै रै ढाळै ल्यावै। परम तत तो बस बुधि अर ग्यान धारा रो बगसणियो बाप ही हुवै। बाप री बगसी संपत नै सुवरती सूं खुद रो भायलो बणै अर समष्टी सूं भी भायलाचारी निभावै ।अंतस में सेवाभाव री धारणा रा भाव जगावै अर साच री इमरत धारा बूक मांड पीवै अर दूजां नै पावै। इण धारा नै साध परम रै इमरत पुतर होवणै री पिछाण बणावै।
ओ ही आनंद है, ओ ही साच है।
सत्यदीप।

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