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इतिहास के पन्नो से…

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श्रीडूंगरगढ़ लाइव…22 फ़रवरी 2023।प्रिय पाठकों,
श्रीडूंगरगढ़ जनपद की कतिपय दिलचस्प ऐतिहासिक जानकारियां श्रीडूंगरगढ़ के साहित्यकार, पत्रकार एवं इतिहासविद डाॅ चेतन स्वामी हमारे साथ नियमित साझा कर रहे है।

 

तीन जागीरदारों की खिलाफत

सन 1898 में महाराजा गंगासिंह 18 वर्ष के होने के कारण पूर्ण वयस्क हो गए। अब उन्हें अपने राज्य के सारे निर्णय लेने के अधिकार प्राप्त हो गए। विगत ग्यारह वर्ष से पोलिटिकल एजेंट और रीजेंसी कौंसिल जो राजकाज के निर्णय ले रही थी। अब महाराजा के वयस्क हो जाने पर संभव नहीं था। इसी बीच पॉलिटिकल विभाग ने तीन निर्णय महाराजा पर थोपने का प्रयास किया, किंतु महाराजा ने उनकी परवाह नहीं की। वे तीन नियम जो पॉलिटिकल विभाग लागू करना चाहता था। उनमें एक नियम था कि जब तक महाराजा वयस्क नहीं हुए थे, उस काल में रीजेंसी कौंसिल ने जो कदम उठाए, उनमें पॉलिटिकल अफसर की सहमति के बिना कोई परिवर्तन न किया जाए। दूसरा नियम था कि कोई भी प्रशासनिक परिवर्तन करने से पूर्व पोलिटिकल एजेंट की स्वीकृति प्राप्त की जानी चाहिए और तीसरा था कि बिना पॉलिटिकल एजेंट के परामर्श के कोई भी महत्वपूर्ण कार्य न किया जाए। लगभग 7 वर्षों तक महाराजा और पोलिटिकल एजेंट की बीच एक तरह का संघर्ष का वातावरण रहा। इधर राज्य के खिलाफ कार्य करने वाले कुछ जागीरदार परस्पर लामबंद हो गए। जिनमें बीदासर के ठाकुर हुकम सिंह, अजीतपुरा के ठाकुर भैरू सिंह, तथा गोपालपुरा के ठाकुर राम सिंह थे। वे लगातार महाराजा के खिलाफ असंतोष का वातावरण बना रहे थे। पोलिटिकल एजेंट को भड़काने में भी इनका पूरा हाथ था। जब महाराजा वयस्क हो गए, तो उन्होंने इन तीनों ही जागीरदारों को समझाने का भरसक प्रयास किया किंतु वे माने नहीं। ये सरदार महाराजा गंगा सिंह की चेतावनी के बावजूद अलग-अलग डेरों में महाराजा के खिलाफ मीटिंग कर साजिश रचते रहे। अंततः महाराजा ने कठोर कदम उठाने प्रारंभ किए और इन तीनो ही जागीरदारों को अपनी जागीरो से च्युत कर दिया।

 

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