



श्रीडूंगरगढ़ लाइव…20 फ़रवरी 2023।प्रिय पाठकां,
श्रीडूंगरगढ़ रा मानीजेड़ा अर लोकलाडला साहित्यकार “सत्यदीपजी” आपणै सागै रोजीनां मारवाड़ी में बतावळ करसी।
साधना री पेली शर्त सरलता है
सैं सूझ दोरो काम जीवन में हुवै, साफ अर सरल होवणो। अलेखूं गांठां हुवै मिनख री जियाजूण रै सुभाव में। जीव रै मन री गांठां ही उणरै बंधणै रो कारण बणै। मिनख मन में सोचै ही कोनी, आपरी दीठ में चितार करणै री रती भर ही कोसीस को करै नीं। उणरै कदै ही भान में को आवै नीं, को म्हैं कांई हूं। म्हनै कांई होवणो है। पण! म्हैं हूं किसोक। ईण सारु जोग्यता जद तक तद आपां मन री गांठां सूं मुगत होवां। आपणै अंतस में ओ भाव जागै कै आपां सावचेत होयनै चित रै चेताचूक होवणै सूं बचाय राखां। ओ भाव धारणो ही सरधा रै पगोथियां चढणो हुवै। ओर दूजो अरथ हो ही को सकै नीं सरधा रो। सरधा री सीधो अरथ ओ ही हुवै, कै मिनखाजूण हरमेस न्यायसंगत हुवै अंतस में न्यायभाव धारणो अर माफी देणै री हिम्मत राखणी ही भावना जगाणै री हूं ही सरलता हुवै, आ सरलता ही सरधा रो साचो सरुप हुवै।
अंतस मांय लुक्योड़ी गांठां रो भारियो लाद्यां जद आपां कोई रै सैमुंहडै होवां तो मांय एक धकड़ -फखड़ सी मांयले भो री ऊंभी रेवै। आपां रै जी में आ हुवै कै जै सामलो आपान सूं बतो ग्यानी अर सांवठो निकळ्यो तो कै पछै आपणै एहम रै चोट तो लागसी कोनी कै। जद मिनख मन में एहम रो कादो चिप्योड़ो हुवै तद गांठ पर गांठां ओर घुळती जावै। मिनख पछै खुद री टांग नै ऊंची ऊभी राखणै सारू कुतरक गढै, का पछै रीसां बळै। ऊण माथै दिखावो हावी रेवै। आ साफ अर साच निगै आवै है कै दिखावो साच रो भख लेवै। जद तक गांठां खुलै नीं अर दिखावै, एहम नै पसवाड़ै नीं करीजै तद तांई सरल होवणो कठैई संभव को हुवै नीं। सरल होवणै सारु मांयलै नै साव रीत्यो करणो पड़सी। कचरै नै खाली करने खुद नै ऊंडै अंतस डूब ढूंढणो पड़सी। जद गांठां खुलसी तो एहम रो बेहम मरणै तांई पूगसी। कद तांई दिखावै अर अहम नै आपां ढोयस्या आ चितार जीम में आवणी चाईजै। अहम रै खातमै सूं ही मांय चकीज्या कचरै रा दगड़ भुर -भुरनै बेवैला। पछै अंतस में आसी सरलता अर सरलता सूं पनपसी सरधा।
सरलता रो सीधो सो मतळब ओ हुवै, कै जकी भावना जी में सिस्य होवणै रा भाव जगावै ।सिस्य भाव तो इंया मानीजै, को जीव झुकै अर पावै। उणरै अंतस में पावणै री पीड़ पनपै। पावणै सारु झुकणो इंया, जिंया कुवै में डोर सूं बंधी बाळ्टी झुकै जद ही भरीजै। जकी बाळ्टी आपरै घमंड में करड़ करै अर झुकै नीं तो उणमै पाणी (ग्यान) री बूंद ही को बड़ै नीं। खुद नै जद बेहम हुवै कै बो जणै बितो सिस्टी में कोई जाणै ही करनी बठै ही अंतस री सरधा रो अजूणो हो ज्यावै।
श्रीमदभगवद्गीता में सरधा अर समत्व रही साधना ही साधक नै मुगत अर रीतो करै। इण बात नै गीता इण भांत समझावै।
अद्वेष्टा सर्वभूतानां मैत्रः करूण एव च।
निर्मम निरंहंकारः समदुःखसुखः क्षमी।।
सगळा सारु द्वेस भाव छोडने, दया भाव राकलोर ही सरधा नै सरसावै।संत कथै है, कै जद अंतस सरधा सूं अरज अर अडीक रा भाव धारणा करसी तद ही स्थिति प्रज्ञता पनपसी। जको निपापो हुवै बो सरधा रो साधक हुवै, सरधा अंहकार नै त्यागणै अर साच रै संसकारां सूं खुदनै जोड़णै सूं मिलै है।
सरधा सूणो आनंद।
सत्यदीप।










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