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इतिहास के पन्नो से…कला प्रिय और संस्कृत भाषा के विद्वान थे महाराजा अनूपसिंह

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श्रीडूंगरगढ़ लाइव…12 फ़रवरी 2023।प्रिय पाठकों,
श्रीडूंगरगढ़ जनपद की कतिपय दिलचस्प ऐतिहासिक जानकारियां श्रीडूंगरगढ़ के साहित्यकार, पत्रकार एवं इतिहासविद डाॅ चेतन स्वामी हमारे साथ नियमित साझा कर रहे है।

विद्वान व्यक्ति थे महाराजा अनूपसिंह
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औरंगजेब काफी क्रूर और असहिष्णु शासक था किन्तु बीकानेर के महाराजा अनूपसिंह से उसकी खूब पटती थी। औरंगजेब की दक्षिणी विजयों में अनूपसिंह की महत्वपूर्ण भूमिका रही। औरंगजेब ने अनूपसिंह को महाराष्ट्र में शिवाजी के खिलाफ युद्ध करने को भी भेजा।
स्वयं अनूपसिंह ने बीकानेर राज्य का भी खूब विस्तार किया। वर्तमान हरियाणा का आधा भूभाग अनूपसिंह ने बीकानेर राज्य के अधिकार में कर लिया था।
अनूपसिंह के पिता का नाम महाराजा करणसिंह था। वे भी बड़े प्रतापी राजा थे। उन्हें हिन्दू राजाओं की ओर *जय जंगलधर बादशाह* की पदवी मिली थी। असल में करणसिंह ने औरंगजेब की कुचालों और कुटिलताओं को प्रश्रय नहीं दिया और न भयभीत हुए। पर उन्हीं का सगा पुत्र अनूपसिंह औरंगजेब से मिल गया। औरंगजेब ने अपने प्रभाव से करणसिंह को बीकानेर राज्य के शासन से च्युत कर दिया तथा उनकी जगह अनूपसिंह को बीकानेर का राजा बना दिया।
अनूपसिंह पिता के रहते बीकानेर के राजा तो बन गए, किन्तु उनके एक भाई ने औरंगजेब के बहकावे तथा बीकानेर का राजा बनाने के लोभ में आकर इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया। उसका नाम बनमालीदास था। अनूपसिंह इस नई मुसीबत से छुटकारा पाना चाहता था। अपने गरीब श्वसुर को उसने बनमालीदास को रास्ते से हटाने का काम सौंपा। एक गोली (दासी) के माध्यम से बनमाली को जहर दिलवा दिया गया और अनूपसिंह के रास्ते का यह कांटा हट गया। औरंगजेब तक समाचार पहुंचाया गया कि बनमाली स्वाभाविक मौत मरा है।
अनूपसिंह केवल योद्धा ही नहीं था बल्कि वह एक कला प्रिय और संस्कृत भाषा का विद्वान व्यक्ति था। उसने संस्कृत तथा अन्यान्य विद्याओं के ढेरों उत्तम ग्रंथों का संग्रह किया।

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