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श्रीडूंगरगढ़ लाइव…07 फ़रवरी 2023 । प्रिय पाठकां,
श्रीडूंगरगढ़ रा मानीजेड़ा अर लोकलाडला साहित्यकार “सत्यदीपजी” आपणै सागै रोजीनां मारवाड़ी में बतावळ करसी।

 

तपस्या रा मायना

धरम अर अध्यात्म री जद बात करां तो साम्हीं आवै, तपस्या। तपस्या रो मायनो हुवै तपणो। लोकभासा में जद चितार हुवै तो कथीजै। उमर रै छैकड़लै नखै आ लिया, घणो ही खायो कमायो, अब तो तप स्यां। तप्यां ही मोख रो मारग मिलसी । सगळा धरम खुदनै तपा तपस्या रै मारग पैंडो करणै सारु चेतावै। गति अर मोख पावणै सारु तपस्या सैंग साधनां बिचाळै बती अणूती जाग्यां राखै।
तपस्या का तीन सरुप हुवै। पैली तपस्या डील सूं, दूजी तपस्या मन सूं अर तीजी तपस्या बोलबचन सूं। आं तीनां नै साधणो अर लोक बैवार में जग कल्याण सारु परोटणो ही तपस्या हुवै अर गिरस्थ नै साधु सरुप बणावै। अगर जै आदमी डील सूं बख पड़ती समाज री पेड़ मिटाणै सारु सेवा करै, तो आ डील री तपस्या मानीजै। मन नै निरमळ राख क्रोध नै बस में करै अर भलाई सारु चितार राख आ मीन तपस्या हुवै। तीजी बात बोलबचन पर आंकस राखनै मीठा बोल उचारै आ बोलबचन तपस्या हुवै। साधु होवणै री पैली शर्त ही बाणी माथै आंकस राखणो अर माड़ी सूं माड़ी परिस्थिति में भी मीठो पड़ूतर देवणो। साधु री बोली में रीस आवणी तो साधुता रो नास करै। श्रीमदभगवद्गीता भी आं तीनूं भांत री तपस्या रो बरणाव इण भांत बतावै।
देवद्विजगुरुप्राज्ञपूजनं शौचमार्जवम्।
ब्रह्मचर्यमहिंसा च शरीरं तप उच्यते।।
परमपिता परमात्मा नै देव सरुप पूजणो अर साधु पुरखां रै ग्यान रो मान करणो अर बचनां सूं किणीरै चोट पूगै उण बोली नै त्यागनै जीणै री जुगत बिठाणी ही साची तपस्या हुवै।

इति आनंद।

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