
श्रीडूंगरगढ़ लाइव…2 फ़रवरी 2023 । प्रिय पाठकों,
श्रीडूंगरगढ़ जनपद की कतिपय दिलचस्प ऐतिहासिक जानकारियां श्रीडूंगरगढ़ के साहित्यकार, पत्रकार एवं इतिहासविद डाॅ चेतन स्वामी हमारे साथ नियमित साझा करेंगे।
बीकानेर राज्य की मुद्राएं
बीकानेर के चौदहवें महाराजा गजसिंह तक बीकानेर राज्य की अपनी कोई मुद्रा नहीं थी। केन्द्र के मुगल राजाओं द्वारा जारी मुद्रा ही बीकानेर राज्य की मुद्रा के रूप में प्रचलित थी। जबकि मुगल सम्राट अकबर से बीकानेर राज्य के वैवाहिक सम्बन्ध थे और बाद में अकबर की संतति से भी बीकानेर के राजाओं के अच्छे सम्बन्ध रहे, अनेक बार बीकानेर रियासत का विस्तार भी कम नहीं हुआ, परन्तु अपनी मुद्रा चलाने जैसा साहस बीकानेर के राजाओं का हो नहीं सका। यह साहस महाराजा गजसिंह ने किया, उन्होंने केन्द्रीय सत्ता के शाह आलमगीर से मुद्राएं ढालने की सनद प्राप्त की। बावजूद स्वीकृति के मुद्राओं पर ठप्पा आलमगीर का ही रहा। सन 1753 से 1760 के मध्य बीकानेर में टकसाल स्थापित की गई।
गजसिंह के बाद यह टकसाल निरंतर चलती रही। गजसिंह के बाद सूरतसिंह, उनके पुत्र रतनसिंह और उनके पुत्र सरदारसिंह तक सभी सिक्के आलमगीर के नाम के ही रहे। बाद में पहली बार सरदारसिंह ने सन 1859 में महारानी विक्टोरिया के नाम से नजरी सिक्का ढाला। यह चांदी का एक रुपया था। बाद में महाराजा डूंगरसिंह ने भी विक्टोरिया के नाम से ही सिक्का जारी किया। बीकानेर के उपरोक्त सिक्कों में गजशाही, डूंगरशाही और गंगाशाही सिक्के प्रसिद्ध रहे हैं।
पहली दफा महाराजा गंगासिंहजी ने महाराजा गंगासिंह बहादुर नामक अपने नाम का सिक्का जारी किया। इस पर बीकानेर स्टेट नाम भी छपा हुआ था। आज भी बहुत लोगों के पास गंगाशाही सिक्के प्राप्त होते हैं। महाराजा गंगासिंह ने अपनी टकसाल का नवीकरण भी किया। मशीनें और तकनीक दोनों में परिवर्तन किया। महाराजा गंगासिंह ने अपने गद्दी नशीन होने की सिल्वर और गोल्डन जुबली मनाई,उस समय भी विशेष मुद्राएं ढाली गई।










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