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श्रीडूंगरगढ़ लाइव…31 जनवरी 2023 ।

प्रिय पाठकां,
आज स्यूं श्रीडूंगरगढ़ रा मानीजेड़ा अर लोकलाडला साहित्यकार “सत्यदीपजी” आपणै सागै रोजीनां मारवाड़ी में बतावळ करसी।

ब्राह्मण किणनै कैवै…?

चित्तमूलो विकल्पोऽयं,चित्ताभावे न कश्चन।
अतश्चित्तं समाधेहि, प्रत्यग्रूपे परात्मनि।।
चित्त एक बगती नदी है। संकळप अर विकळप री दो धारावां निसरती लखावै। अठै आपांनै चित्त सूं चेतना कांनी पैंडो करणो है। आ ही तीसरी धारा री तिरवेणी ही आपांनै सारस्वत बणावै। आ ही शाश्वत रहणी है। मन जोवै है,नदी रै बाळै नै जाणन सारु, ढूंढणै री आ सगळी कोशिश उणनै एकाग्रता सूं पसवाड़ै हटावै। आपांनै तो कोशिश आ करणी है, कै मन तो अब कीं है ही कोनी। बस, अठै सूं ही जीव नै एकाग्रता मिलणी पोळाईजै।
आ एकाग्रता ही ब्राह्मण बणावै। ब्राह्मण होवणो कोई जात होवणो कोनी हुवै। आ तो एक विचारां री जातरा है,जकी पूरी हुयां ही ब्रह्म जी रै मांय थरपीजै।
हर्ष, अमर्ष,भय अर उद्वेग सूं जको खुद नै पसवाड़ै करलै, बो ही ब्राह्मण होवणै रो अधिकारी हुवै। आं बंधणां नै तोड़णै री खिमता राखणो ही ब्रह्मत्व है। विज्ञान में दो बातां आई है। अणु अर परमाणु, पण आगे आध्यात्म भी तीजो बिंदु साम्ही आवै है, ब्रह्म+ अणु। स्थूल सूं सूक्ष्म होवणो अर सूक्ष्म सूं सूक्ष्मतर होवणो ही ब्राह्मण होवणो हुवै है। अठै जैन आगम आ बतावै है, कै– इसिणो महप्पसाया हवंति। साधुता ही ब्राह्मण हुवै। अभय अर अहम रै निकष री साधना ही बाकी साधना सूं बती महत्व राखै। वयमिह परितुष्टाःमनसि च परितुष्टि। भाव जागृति ही ब्रह्म तेज जागृति रो मूळ हुवै है।
श्रीकृष्ण भी आ बात गीता में कही है, कै मन अर इंद्रियां सेती शरीर नै बस में कर परो म्हारै मांय गेहरो निश्चय राखण आळो ही म्हनै चोखो लागै। भगवान री आ बात अर संदेसो गीता री एकाग्रता रै बारै में बतावै है।जको एकाग्रता नै साध, साधना रो साचो मारग पकड़ै बो ही बस ब्राह्मण होवणै रो इधकारी हुवै। बाकी तो भेस अर लेस है

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