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श्रीडूंगरगढ़ लाइव …30 जनवरी 2023 ।

प्रिय पाठकों,
श्रीडूंगरगढ़ जनपद की कतिपय दिलचस्प ऐतिहासिक जानकारियां श्रीडूंगरगढ़ के साहित्यकार, पत्रकार एवं इतिहासविद डाॅ चेतन स्वामी हमारे साथ नियमित साझा करेंगे।

नगरपालिका श्रीडूंगरगढ़ की स्थापना

बीकानेर राज्य ने अपनी राज्य कौंसिल में सन 1923 को म्युनिसिपल एक्ट पास किया और 1925 में उसे लागू किया। म्यूनिस्पेलिटीज के लिए अनेक नियम उपनियम बनाए गए । बीकानेर राज्य के सभी शहरों में 1930 को म्युनिसिपल चुनाव की तैयारियां शुरू की गई। सभी म्यूनिस्पेलिटी में प्रशासक के बतौर सेक्रेटरी लगाए गए। सन 1931 में कौंसिल के सदस्यों को ही म्यूनिस्पेलिटीज के सदस्य चुने गए। कुछ अर्से हरखचंदजी भादानी रहे। बाद में कौंसिल के सदस्य मालचंदजी भादानी बने। वे 17 वर्षों तक नगरपालिका के अध्यक्ष रहे। वे सन 1955 तक अध्यक्ष रहे। उदार व्यक्ति थे। म्यूनिस्पेलिटी से कोई लाभ नहीं लिया, बल्कि अपना योगदान किया। पुस्तकालय के निकट जो नगरपालिका की छोटी सी बिल्डिंग थी, वह उन्हीं के काल में बनी। जिसे अब नए सिरे से नगर के भामाशाह जतन पारख ने भव्य बना दिया है। तीसरे अध्यक्ष के रूप में 1955 में अर्जीनवीस अमरूराम शर्मा अध्यक्ष चुने गए। इस समय तक चार ही वार्ड हुआ करते थे और चारों वार्डों से दो दो सदस्य राजा जी के समय तक उनकी इच्छा से ही चुने गए। वैसे भी उस समय इज्जतदार व्यक्ति का नाम वार्ड मेंम्बर के रूप में प्रस्तुत किया जाता। राजाओं के समय रायबहादुर आशारामजी झंवर भी एक वार्ड मेम्बर थे। अमरूराम शर्मा लगभग डेढ वर्ष तक अध्यक्ष रहे। कोई प्रभावशाली नहीं रहे। उनकी असंतुष्टि के बीच एक डेढ माह के लिए कालूबास के मालचंदजी पुरोहित भी अध्यक्ष बनाए गए। वे भी कुछ खास कर नहीं पाए।फिर सन 1957 से 59 तक यमुनाप्रसाद लखोटिया अध्यक्ष बने और गांधीपार्क की स्थापना की। गांव के कुछ कुओं को विद्युतकृत करवाने का काम किया। सन 1960 में जीवराज डागा अध्यक्ष बने। तन मन और सूझबूझ से कार्य किया। अनेक सरकारी उपक्रम के लिए जमीनें अलाॅट करवाई, कार्यालय खुलवाए।सिंधियों को दूकानें दिलवाई, काॅलोनी के लिए जगह सुनिश्चित की। श्रीडूंगरगढ़ नगरपालिका में उनके काल को वास्तविक विकास काल कहा जा सकता है। जीवराज डागा का यह काल डेढ ही वर्ष का रहा। फिर देवदत्त जी पालीवाल अध्यक्ष चुने गए। वे एक ही वर्ष रहे। पंडित जी विद्वान तथा साफ सुथरी छवि के व्यक्ति थे, उनसे राजनीति ज्यादा सधी नहीं। सात माह के लिए त्रिलोक शर्मा अध्यक्ष बने। पुनः 65 से 67 तक यमुना प्रसाद लखोटिया अध्यक्ष बने। श्रीडूंगरगढ़ के बस स्टैंड पर सार्वजनिक महत्व के प्लाट पर निजी अधिकार के कारण इस काल में विवादास्पद रहे। पुनः 70 से 72 तक जीवराज डागा अध्यक्ष बने। अब तक नगरपालिका के दस वार्ड हो गए। 72 से 73 तक जमालुद्दीन चूनगर अध्यक्ष बने। कोई खास करिश्मा नहीं दिखा पाए। इस बीच किसनाराम नाई भी राजनीति में अपनी पैठ दिखाने लगे। 72 में वे उपाध्यक्ष थे और अध्यक्ष उपाध्यक्ष के मध्य बड़ा भारी विवाद हुआ। परस्पर मुकदमें हुए। विवादों में फसी नगरपालिका में लम्बे समय तक प्रशासक नियुक्त रहे। लगभग सात वर्ष के पश्चात जब चुनाव हुए तो सन 1982 में अपने पक्ष के मात्र दो वोट होते हुए भी त्रिलोक शर्मा अध्यक्ष बने। वे 86 तक रहे। 90 से 95 तक सोहनलाल बरङिया अध्यक्ष बने। 95 से 2000 तक जीवराज नाई अध्यक्ष बने। 2001 से 2005 तक पहली बार महिला अध्यक्ष के रूप में शारदा देवी बाहेती अध्यक्ष बनीं। उनका कामकाज पति हरि बाहेती देखते थे। ईमानदारी से काम किया। 2005 से 2010 तक रामेश्वर पारीक अध्यक्ष बने। 2010 से 13 तक किसनाराम नाई अध्यक्ष बने। 2014–15 एक वर्ष के लिए राधेश्याम स्वामी को अध्यक्ष बनाया गया। 2015 से पुनः महिला अध्यक्ष बनीं प्रियंका सारस्वत। उनके बाद अब तीन वर्षों से मानमल शर्मा अध्यक्ष हैं।

      डॉ. चेतन स्वामी

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