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इतिहास के पन्नो से….

श्रीडूंगरगढ़ लाइव…25 जनवरी..

प्रिय पाठकों,
आज से क्रमशः श्रीडूंगरगढ़ जनपद की कतिपय दिलचस्प ऐतिहासिक जानकारियां श्रीडूंगरगढ़ के साहित्यकार, पत्रकार एवं इतिहासविद डाॅ चेतन स्वामी हमारे साथ नियमित साझा करेंगे।

 

श्रीडूंगरगढ की स्थापना का पट्टा..

महाराजा डूंगरसिंहजी की ओर से श्रीडूंगरगढ बसाने के आदेश का पट्टा, यहां पांच पंच बनाकर उन्हें सौंपा गया। वे पांचों पंच निकट के अलग-अलग गांवों से थे तथा महाराजा की नजर में प्रसिद्ध व्यक्ति थे। उन्होंने ने ही कुछ अर्से पहले नया नगर बसाने की गुहार दरबार में लगाई थी, इसलिए महाराजा ने उन पांचों को ही पंच बना दिया। उनके कंधे पर छोटा-मोटा दायित्व नहीं था। यहां बसने के लिए लोग उमड़ पड़े।
संवत 1939 जेठ बदी 3 के शुभ दिन शहर बसाने का आदेश हुआ। यही श्रीडूंगरगढ़ का स्थापना दिवस है। एक पट्टे के रूप में यह आदेश
1 – तनसुखदास भादानी
2 -मूळचंद बाहेती
3 – ईसरदास लूणिया
4 – चौथमल मालू
5 – हरखचंद चौपड़ा
को सौंपा गया। इस पट्टे में बसने की प्रकिया को सुचारू बनाने के लिए बहुत सारी राजकीय शर्तें हैं, जिन्हें हम नियम भी कह सकते हैं, जिनका पालन पूरे नगर को करना पड़ा। वे नियम बड़े दिलचस्प हैं, उन्हें एक दो दिन बाद लिखेंगे ।
उपरोक्त पांच पंचों में मूलचंद जी बाहेती के वंशज श्री मोहनलाल जी बाहेती के घर 140 वर्ष पुराना यह पट्टा आज भी सुरक्षित है।उनकी पांचवी पीढ़ी के प्रपौत्र श्री मोहनलालजी बाहेती ने मुझे ढेर सारे प्राचीन कागद -पत्र दिखाए, जिन में एक मूल पट्टा भी था, जिसकी नकल मैंने 20 वर्ष पहले आर्कव्हाइज से प्राप्त की थी।
श्रीडूंगरगढ के द्वितीय पंच मूलचंद जी बाहेती कालू गांव के श्री प्रेमराजजी बाहेती के पुत्र थे। तत्कालीन समय में वे अनाज के बड़े व्यापारी थे और बोहरे भी थे। बड़े व्यवसायी होने के कारण राजघराने में उनकी इज्जत थी। उनकी धर्मपत्नी चुन्नी देवी भी दाठीकड़ औरत थीं। मूलचंदजी की भादानी तनसुखदास जी के साथ बड़ी मित्रता थी। वे आपस में धर्म भाई थे।उन्होंने श्री डूंगरगढ के बाजार के कोने पर एक बड़ी हवेली बनवाई। इसे श्रीडूंगरगढ़ की प्रथम हवेली कहा जा सकता है। श्रीडूंगरगढ की दो हवेलियों के भितिचित्र बड़े ही सुंदर थे, एक हरखचंद जी भादानी की हवेली, दूसरी मूलचंद जी बाहेती की हवेली। दोनों साथ -साथ ही बनी। मूलचंद जी और बाद में उनके पुत्र बख्तावर मलजी ने श्री डूंगरगढ में पट्टे, नोहरे ,और दूकानें बड़ी संख्या में खरीदी। उल्लेख मिलता है 13 दूकानें उन्होंने एक ही दिन में खरीदी। उनके इस जमीन खरीद प्रेम के कारण जमीनों के दाम सवा रुपये पट्टे से शुरू होकर कुछ ही वर्षों में तीन हजार रुपये पट्टे तक हो गए। राजाजी ने प्रसन्न होकर उन्हें एक जमीन मढी के कुए के सामने सत्यनारायण भगवान का मंदिर बनाने के लिए भी दी। कोई कारण से वह मंदिर तो नहीं बन सका, पर वहां एक धर्मशाला बनादी गई, जो सत्यनारायण धर्मशाला के नाम से आज भी प्रसिद्ध है।
किसी के भी दुर्दिन आते हैं तब पूछ कर नहीं आते। बख्तावर मल जी के छोटे भाई हजारीमलजी ने कलकत्ता में बहुत बड़ा फाटका किया। उसके कारण सब कुछ चौपट हो गया। सुन्दर बनी हवेली 19 हजार रुपये में अपने मित्र हरखचंद जी भादानी को बेचनी पड़ी, जो आज इन्द्र चंद जी भादानी के पुत्र निर्मल कुमार के पास है। एक बार आर्थिक रूप से बर्बाद होने के बाद आज यह परिवार पुनः प्रतिष्ठित परिवारों में से एक है।

            चेतन स्वामी

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