श्रीडूंगरगढ़ लाइव 07 जुलाई 2023। गत 30 जून को श्रीडूंगरगढ़ से घर से निकली एक नाबालिग लड़की और एक युवती के प्रकरण का पटाक्षेप आज उन दोनों लड़कियों के घर पहुंचने पर हो गया। इन पांच दिनों को श्रीडूंगरगढ़ की जनता ने पुलिस थाना श्रीडूंगरगढ़ के सामने ही गुजारे और कैसे गुजारे ये किसी को भी बताने की जरूरत नहीं है।
साम्प्रदायिकता, अफवाहें और तरह तरह की बाते बस यही सुनने को मिल रही थी। किसी के पास भी ना पुख्ता जानकारी ना खबर बस थे तो सिर्फ कयास।
कल 5 जुलाई को जब सुबह सुबह ही उन दोनों लड़कियों के मिल जाने की खबर मिली तब सभी ने राहत की सांस ली। प्रशासन ने रात-दिन एक के दिये उन दोनों को ढूंढने में। लड़कियां आगे-आगे और पुलिस पीछे पीछे। लगातार पांच दिनों के अथक प्रयास के बाद लड़कियां मिली महाबलीपुरम के LGBT सेन्टर में। जहाँ तमिलनाडु पुलिस और स्थानीय पुलिस ने दोनों को अपने साथ लिया और स्थानीय पुलिस टीम के साथ आज सुबह सूर्योदय से पहले ही श्रीडूंगरगढ़ थाने पहुंची।
वो हकीकत जो हमे जाननी चाहिए….
इस घटनाक्रम की पटकथा कई दिन पहले ही लिखी जा चुकी थी। इन दोनों में पहले से ही सम्बन्ध थे। इन्होंने नेट पर सर्च किया कि महिलाओं के लिए भारत में सबसे सुरक्षित जगह कौन सी है जहां वो सुरक्षित रह सके और महिला साक्षरता सबसे ज्यादा कहां है..? तब इन्होंने केरल को देखा। इन्होंने अपनी पसंद ही केरल को बनाया जहां इन्हें जाना था।
इसके बाद ये यहाँ से रवाना हुई। सुबह 8 बजे बस से जयपुर गयी। वहाँ से ट्रेन पकड़ कर मुम्बई में बोरीवली स्टेशन से उतरी। वहां से ये दोनों बस द्वारा पूना के लिए चल पड़ी। पूना से इन दोनों ने एर्नाकुलम की ट्रेन पकड़ी। यहाँ से ये दोनों बस से तिरुवनंतपुरम गयी। तिरुवनंतपुरम के रेल्वे स्टेशन के वेटिंग रूम में इन्होंने अपनी रात बिताई क्योंकि इन्हें ट्रेन नही मिली। फिर ये तिरुवनंतपुरम से चेन्नई के लिए निकली। जहां ये दोनों देर शाम ऑटो से महाबलीपुरम के LGBT सेंटर पहुंची।जहां से पुलिस उनको दस्तयाब करके श्रीडूंगरगढ़ ले आई। जहाँ निदा बहलीम को केंद्रीय काराग्रह और नाबालिग को सीडब्ल्यूसी में पेश किया जहाँ से मामले की गंभीरता को देखते हुए उसे नारी निकेतन भेज दिया।
यह घटनाक्रम अपने पीछे कुछ सवाल छोड़ गया जिसको हर शहरवासी को समझना और विचार करना जरूरी है।
इन दोनों लड़कियों ने अपनी नासमझी और नादानी के कारण घर छोड़ा और अपने पीछे अपने परिजनों को दुखद स्थिति में ला दिया। इसके अलावा इस शहर को उस मुहाने पर खड़ा कर दिया जो कहीं ना कहीं सांप्रदायिकता का रंग ले रहा था या फिर यूं कहें कुछ लोगों द्वारा इसको सांप्रदायिक रंग दिया जा रहा था। आज जब वह दोनों घर लौट आई है, तब कहीं ना कहीं हमें यह सोचने की जरूरत है कि दो लोगों की मूर्खता या नादानी या नासमझी के कारण हम अपना विवेक इतना खो चुके थे कि हमने अपने शब्दों की मर्यादा को लांध किया और अपने सांप्रदायिक सद्भाव के विचारों को त्याग दिया। हमने अपना स्वविवेक खोकर शहर को विरोध की अग्नि में झोंक दिया। इसके जिम्मेदार हम सभी है और वो लोग भी है जो ऐसे हालातों को समझते हुए भी चुप रहे और हम मीडिया वाले भी ।
प्रशासन की सूझबूझ और अपने संसाधनों के संपूर्ण उपयोग से इन दोनों लड़कियों को ढूंढा गया। जिसमें वह सभी लोग शामिल थे जो कहीं नहीं चाहते थे कि श्री डूंगरगढ़ और श्री डूंगरगढ़ की जनता इन दोनों की नादानी और नासमझी का परिणाम भुगते।










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