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हारे वही जो लड़ा ही नही – 5 स्वाध्याय

श्रीडूंगरगढ़ लाइव 16 जून 2023।श्री श्याम सोनी एक बहुआयामी व्यक्तित्व रखते हैं, आप न केवल एक सफल बिजनेसमैन हैं, बल्कि आर्ट ऑफ लिविंग के एक कुशल शिक्षक, योग प्रशिक्षक और मर्म चिकित्सा प्रशिक्षक भी हैं। आज से श्रीडूंगरगढ़ लाइव पर प्रतिदिन पाठकों से रूबरू हुआ करेंगे।

हारे वही जो लड़ा ही नही – 5 स्वध्याय

विपरीत समय मे विजय के 7 सुत्र
संकल्प
सहयोग
साधना
स्वाध्याय
सत्संग
सेवा
समर्पण
1 संकल्प
2 सहयोग
3 साधना
4 स्वाध्याय
युवापन मे हम सब  डायरी,संस्मरण लिखने के शौकीन रहे है ,यह स्वाध्याय का ही स्वरूप था ,जो अनुभव व इच्छाये हम अपनी लेखनी से लिख देते है ,उनकी सृष्टि का होना सुनिश्चित कर देते है ।
स्वाध्याय शरीर -मन- भावना -अध्यात्म से होता हुआ आत्म स्वरूप की यात्रा सम्भव करवाता है।
विषय का अध्ययन निरंतर लगातार हो तो ही स्वध्याय ।
गुरू ,मित्र ,आगम (ग्रंथ),अनुभव आदि से मिले सुत्रो का श्रवण-मनन-निधिध्यास ही स्वध्याय
स्वध्याय अंतर्मुखी मन आदि इन्द्रियों का प्रसाद है ।
मिला ज्ञान स्वध्याय की प्रयोगशाला मे परिष्कृत हो-
नये अनसुने अद्भुत परिणाम देता है ,जो
साधना से सजे स्वाध्याय जीवन की अनुपम निधि होती है ।
ध्यान रहे स्वध्याय सम्पूर्ण होता है मनन और निधिध्यास से
इनके बिना यह व्यर्थ है ,अधुरा है ,नुकसान भी कर सकता है
आज कल ऐसे व्यर्थ ज्ञान की सप्लाई बहुत है,पर बिना Apply के विसर्जित यह ज्ञान किस काम का
साधना से स्वध्याय समृद्ध-सम्पूर्ण हो संकल्प को साधता है।
स्वाध्याय स्वयं का स्वय से परिचय है ।
स्वाध्याय प्रार्थना है ,आराधना है।
स्वाध्याय मन मन्दिर की तीर्थ यात्रा है।
स्वाध्याय समस्त आशीषो का संकलन* है।
स्वाध्याय भूत -भविष्य से मुक्त होकर वर्तमान मे जीना है।
स्वध्याय राग-द्वेष से मुक्ति का सहज प्रयोग है।
स्वाध्यायसमत्वम योग उच्चयते का द्वार है ।
स्वाध्याय तमस-रजस- सत्व से गुणातीत होने का सुपथ है।
स्वाध्याय दिन भर के कर्मो से जगे अंहकार-क्रोध से मुक्ति का त्वरित साधन है।
प्रयोग –
स्वध्याय के अनेक मार्गो मे मुझे ध्यान मार्ग सर्वोत्तम लगता है।
जो मुझे नित नवीन कर्म विपाक (फल) और आशय (संस्कार) से त्वरित मुक्ति दिलाकर परम शक्ति का सानिध्य आनंद निधि से सराबोर करता है ।
स्वाध्याय के दो भाग
1 विगत दिवस की तमस- रजस -सत्व कर्म विभाजन से सीख लेते हुये सभी गुण कर्म फल – संस्कार को परम शक्ति को समर्पण करना
2 आज के दिवस के लिये तमस-रजस-सत्व कर्म वर्गीकरण से उत्तरोत्तर अपवर्ग करते हुये परम शक्ति को कर्ता मानते हुये उसकी मर्जी अनुसार कार्य योजना
1 आंख बंद कर के श्वासो पर ध्यान लेजाकर मन को अमन करते हुये नाभि से नीचे के शरीर के अंग राशि पर ध्यान ले जाते हुये विगत दिवस के जिस जिस समय आलस्य -जड़ता – नकारात्मकता -द्वेृष आया उन घटनाओ – पात्रों को स्मृति पटल पर लाये और हर भाव को स्वीकार करते हुये आराध्य -गुरू को समर्पित करे।
धीरे से ध्यान नाभि से ह्रदय तक बनाये ऱखते हुये दिन भर मे पंचेन्द्रियो व मन के वशीभूत हुये रजस कर्म स्मृति पटल पर लाये जैसे खान-पान, राग, वासना, सम्मान की चाह ,अंहकार व मै ही ठीक हूं के भाव जिन जिन घटनाओ से आये उन सभी को स्वीकार करते हुये प्रथम कदम की तरह आराध्य -गुरू को समर्पित करे।
धीरे से ध्यान गले से भृकुटि तक बनाते हुये दिन भर के सात्विक, शुभ कर्मो को याद करते हुये अंहकार भाव को विस्मृत करते हुये मां पिता व गुरू,जन्मभूमि व परम शक्ति के प्रति कृतज्ञ भाव लाते हुये कि ये सब उनकी कृपा से ही हुआ है इन सभी सात्विक कर्मो को भी आराध्य -गुरू को समर्पित करे।
आखिरी चरण मे गुणातीत अनुभुत करते हुये सिर की चोटी व उससे थोडा ऊपर ध्यान रखते हुये यह भाव दर्शन मे लाये कि मै शरीर नही मै मन भी नही और आनंद भाव से विश्राम करे और एक ही भाव मैं श्री हरि का हूं श्री हरि मेरे है, मैं आपको भूलू नही।
2-4 मिनिट के बाद मुस्कराते हुये आंखे खोले-
(अनुमानित समय 5-10 मिनिट )
2- क्रियान्वन कार्य योजना
कुछ देर बाद (किसी भी तरह की योग साधना करते हो तो उसके बाद )शरीर के प्रति सजग – धन्यवादी होते हुये विश्राम मे लाये तत्पश्चात धीरे धीरे श्वासो पर ध्यान ले जाते हुये वर्तमान मे आ जाये।
पहली साधना की तरह ही नाभि से नीचे के शरीर के अंग राशि पर ध्यान ले जाते हुये आज के दिवस की कार्य योजना बनाये, जिसमे शरीर द्वारा किये जाने वाले हर अधूरे व पेंडिग कार्य की सूची बनाये और हर एक कार्य को समयबद्ध करने का संकल्प लेते हुये उत्साह व सृजनात्मक शक्ति का आव्हान करे ।
धीरे से ध्यान नाभि से ह्रदय तक बनाये ऱखते हुये दिन भर के पंचेन्द्रियो व मन के वशीभूत होने से हो सकने वाले रजस कर्म स्मृति पटल पर लाये जैसे खानपान,राग ,वासना ,सम्मान की चाह ,अंहकार व मै ही ठीक हूं के भाव जिन जिन घटनाओ से आ सकते है उदारता व सभी (व्यक्ति -परिस्थिति)को स्वीकार करने के भाव का सानिध्य लेते हुये उन सभी को सुचीबद्ध करे।
धीरे से ध्यान गले से भृकुटि तक बनाते हुये दिन भर के लिये अपनी अंतर्निहित (INHERRIT) तन – मन – धन की योग्यताओं को स्मरण करते हुये मानव- समाज- देश सेवा मे कर्मयोगी के भाव से परोपकार के कार्यो की सुची व समय निर्धारित करे।
आखिरी चरण मे अंकिंचन भाव (मै कुछ नहीं ) को अनुभुत करते हुये सिर की चोटी व उससे थोडा ऊपर ध्यान रखते हुये यह समपर्ण भाव दर्शन मे लाये और एक ही भाव मैं श्री हरि से मिले कृपा प्रसाद से श्री हरि की सेवा कर रहा हूं ,मैं आपको भूलू नही।
2-4 मिनिट के बाद मुस्कराते हुये आंखे खोले।
हो सके तो इस कार्य योजना को समयबद्ध करते हुये Today’s Work to Do मे लिख ले ।
स्वध्याय से संकल्प की सिद्धि सुनिश्चित है , स्वध्याय से प्राप्त निधि – सिद्धि -विभुति का कैसे सदुपयोग करे अगले भाग मे उस पर संवाद करेंगे।
आपको हमारा प्रयास कैसा लगा ,अवश्य बताये ये गुरू -परमशक्ति की तरह प्रेरणा देता है ।
मंगल हो

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