श्रीडूंगरगढ़ लाइव…18 मई 2023।प्रिय पाठकों,
श्रीडूंगरगढ़ जनपद की कतिपय दिलचस्प ऐतिहासिक जानकारियां श्रीडूंगरगढ़ के साहित्यकार, पत्रकार एवं इतिहासविद डाॅ चेतन स्वामी हमारे साथ नियमित साझा कर रहे है।

जन-नेता थे-कामरेड त्रिलोक शर्मा
भले ही श्रीडूंगरगढ़ की राजनीति में कितने ही नेता हो गए ,पर सामान्य जन का खरा अपनत्व पानेवाले नेता कामरेड त्रिलोक शर्मा की बात ही अलग थी। हर सामान्य जन की पीड़ा उनकी अपनी पीड़ा थी। वे दूसरे के दर्द को अपना दर्द मानते थे। बाल्यकाल में गणेशीलाल व्यास उस्ताद जैसे जनपक्षधर कवियों की कविताओं की ऐसी पांण लगी कि वे साम्यवादी सोच के हामी बन गए। प्रखरता से कम्युनिस्ट साहित्य पढा। कार्ल मार्क्स के द्वन्दात्मक भौतिकवाद को गंभीरता से समझने का प्रयत्न किया। मोठ आंदोलन से उनकी चमक श्रीडूंगरगढ़ के शहरी और ग्रामीण क्षेत्र में बढी तथा उनकी पैठ जननेता के रूप में बनी।

उनके भाषण देने की कला अनूठी हुआ करती थी। विरोधी भी उनके भाषण को सुनते और उसकी प्रशंसा किए बिना नहीं रह पाते। महाराजा करणीसिंहजी तो उनकी वर्क्तृत्व कला के मुरीद हो गए। आज के राजनेता अपने हित को आगे रखकर राजनीति करते हैं, किन्तु उन्होंने ऐसा कभी नहीं सोचा न किया। शहर के उतरी क्षेत्र में वन विभाग ने जमीन कब्जाने के चक्कर में कालूबास के लोगों पर बेवजह मुकदमें कर दिए तो उन्होंने उनकी लड़ाई लड़ी। जब लिंक एक्सप्रेस का यहां स्टोपेज बंद हुआ तो रेल्वे स्टेशन पर आरएसी के डंडे खाए। शहर के सभी छोटे-बड़े आंदोलनों का नेतृत्व उनका रहता। श्रीडूंगरगढ़ को बीकानेर जिले में मिलाने का आंदोलन उनके बिना कतई सफल नहीं हो पाता। मात्र दो पार्षद होते हुए नगरपालिका के अध्यक्ष बने और उनका कार्यकाल यादगार रहा।

त्रिलोक जी का जन्म 1934 में हुआ । श्रीडूंगरगढ़ क्षेत्र में उन्होंने साहित्य और पत्रकारिता की नींव रखी। उनकी कविताएं आशावादी भाव लिए हुए होती। एक बौद्धिक पुरूष के रूप में उन्होंने अपनी अमिट छाप छोड़ी। उनके सम्भाषण में बौद्धिकता और देश-विदेश की समसामयिक घटनाओं विचारों का समावेश होता था। उनके बाद वैसे जनप्रिय नेता की श्रीडूंगरगढ़ को प्रतीक्षा ही है। जन समाज के कामों में उन्होंने अपनी चल अचल अधिकांश सम्पदा गंवा डाली पर उन्हें इसका कोई मलाल नहीं रहा। वे हर किसी की मदद के लिए तैयार रहते। एक बार विधायक का चुनाव भी लड़ा,पर सफल नहीं हो पाए। उनके पास लुटाने-खिलाने के लिए था ही क्या? सन 2004 में यह लोकप्रिय और जनता के हृदयहार नेता हमें छोड़ कर अनंत में विलीन हो गए।
शीघ्र ही कामरेड त्रिलोक शर्मा पर एक ग्रंथ का प्रकाशन हो रहा है।











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