




श्रीडूंगरगढ़ लाइव…18 मार्च 2023।प्रिय पाठकों,
श्रीडूंगरगढ़ जनपद की कतिपय दिलचस्प ऐतिहासिक जानकारियां श्रीडूंगरगढ़ के साहित्यकार, पत्रकार एवं इतिहासविद डाॅ चेतन स्वामी हमारे साथ नियमित साझा कर रहे है।
मढी का कुआ श्रीडूंगरगढ़ की ऐतिहासिक धरोहर है
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किसी भी शहर के बसने की प्रकिया काफी दिलचस्प होती है। राजाओं के समय में शहर बसाना काफी तामझाम भरा हुआ करता था। जहां श्रीडूंगरगढ़ शहर बसा हुआ है, वहां एक लम्बी ताल भूमि थी, जो चारों ओर टीलों से घिरी हुई थी। अपने आर्काइवल रिकार्ड में इस अनावृत भूखंड को सारसू गांव के ताल के रूप में परिभाषित किया देखते हैं। और फिर इस जगह पर बिना किसी समतलीकरण के शहर को बसने की प्रकिया देखते हैं तो समझ में आती है कि शहर के ठीक बीच में कुए क्यों बने हुए थे। प्रत्येक गली में सड़क बन जाएगी, ऐसा अनुमान किसी को नहीं था। कुओं का जलस्तर बना रहे, इसलिए ढलान में कुए बनाए जाते थे। ताल के मध्य बने दोनों कुए *जाटिया और मढ़ी वाला* न केवल सारसू, रूपालसर की प्यास बुझा रहे थे, सालासर के लोग भी यहां से पानी ले जाते थे। शहर बसाने के लिए बीकानेर से राजाजी का भेजा अमला आया, उनके लिए मढीवाला कुआ बड़ा उपयोगी रहा। शहर बसना शुरू होने के साथ ही इसकी मरम्मत प्रारंभ की गई। शहर है तो शहर की गवर भी होनी आवश्यक थी और गवर के फेरे कुए के चौगिर्द दिलाए जा सकते हैं। इसलिए दोनों कुओं का और अधिक महत्व बढ गया। आज ये दोनों कुए बेशक गहन उपेक्षा भोग रहे हैं, पर कभी इनकी रौनक देखते ही बनती थी। ये दोनों कुए शहर बसने से भी सैकड़ों वर्ष प्राचीन धरोहर। इस बात से अनजान श्रीडूंगरगढ़ नगरपालिका इनके पट्टे काटने की तैयारी कर अपनी मूर्खता का प्रदर्शन कर रही है। ऐतिहासिक धरोहर को खुर्दबुर्द करने का अधिकार नगरपालिका को किसने दे दिया। नगरपालिका को तो इनकी संरक्षा करनी चाहिए। मढी के कुए का पूरा नाम फतेहसागर कुआ है। इसका निर्माण रुपालसर के ठाकुर फतेहसिंह द्वारा करवाया गया था। बाद में शहर बसाने पर इस पर बीकानेर राज्य का अधिकार हो गया।










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