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इतिहास के पन्नों से…श्रीडूंगरगढ़ में शिक्षा की अलख जगाई थी, गुरुदेव शिवप्रताप जी ने

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श्रीडूंगरगढ़ लाइव…25 फरवरी 2023।

श्रीडूंगरगढ़ में शिवप्रतापजी गुरुजी का कहीं भी नाम सुनकर शहर के पचास से अधिक उम्र के व्यक्ति का सिर श्रद्धा से झुक जाता है। सबके श्रद्धास्पद थे गुरुजी। वे सच्चे गुरुजी थे। सच्चा गुरु निर्लोभी होता है। हर विद्यार्थी की आर्थिक स्थिति से वे भलीभांत वाकिफ थे। उन दिनों पैसा कहां था। अपनी रोटी और रखे हुए अध्यापकों की रोटी चल जाए-इतनी सी अभिलाषा थी-श्री शिवप्रतापजी व्यास की। स्वयं पांचवीं तक वाणिकी पढे हुए थे–किन्तु आठवीं कक्षा तक को गणित आदि आसानी से पढा देते। वे पहाड़ों के दिग्गज थे। आज भी जिसे पहाड़ा आता है वह गणितीय सवाल कम्प्यूटर से काफी पहले हल कर सकता है।
शिवप्रतापजी के पिताजी का नाम श्री लक्ष्मीनारायणजी था। गांव था-कल्याणसर। नापासर के निकट। सन 1933 में वे कालू गांव में पढा रहे थे। आडसरबास के सिंघीजी उन्हें श्रीडूंगरगढ़ ले आए। एक वर्ष सिंघियों के बच्चों को पढाया, फिर 1934 में भीखमचंदजी नौलखा का जहां घर है-वहां एक नोहरा हुआ करता था उसमें स्कूल लगानी शुरू की। फिर अखारामजी सेवग से अठारह सौ रुपये में आधा पट्टा जमीन लेकर स्कूल बनाया। 1935 में शिव मिडिल स्कूल की स्थापना की। रामप्रताप गुरुजी सगे छोटे भाई थे। उन्होंने पूरा साथ दिया। मदनलाल चूरा अर्थात मदो गुरुजी उनके सगे भानजे तो नहीं थोड़े दूर के भानजे थे–वे किलचू गांव के थे। दस वर्ष की अवस्था में मदो गुरुजी को अपने पास लाए। उन्हें अपने पास रखकर आठवीं तक पढाया। जीवनभर बेटे की तरह स्नेह दिया। कुछ अर्से बाद आधा पट्टा जमीन भादानियों से खरीद कर स्कूल का विस्तार किया।
शिवप्रतापजी पढाई का मूल्य जानते थे। इसलिए कई अच्छे अध्यापक रखे। वे अत्यधिक परिश्रमी और दयालु प्रकृति के थे। उनके पढाए सभी शिष्यों ने जीवन में सफलता प्राप्त की। उन पर बहुत कुछ लिखा जा सकता है। वे 81 वर्ष की अवस्था में देवलोक गमन कर गए। उनके लगाये शिक्षा के पौधे का सींचन उनकी चतुर्थ पीढी आज भी कर रही है। उनकी धर्म पत्नी ईश्वर भक्त थीं-वर्षों अन्न नहीं खाया।

 

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