



श्रीडूंगरगढ़ लाइव…21 फरवरी 2023।प्रिय पाठकों,
श्रीडूंगरगढ़ जनपद की कतिपय दिलचस्प ऐतिहासिक जानकारियां श्रीडूंगरगढ़ के साहित्यकार, पत्रकार एवं इतिहासविद डाॅ चेतन स्वामी हमारे साथ नियमित साझा कर रहे है।
बाघावास बना सांडवा
वर्तमान बीकानेर संभाग में राव बीका द्वारा राज्य स्थापित करने से पूर्व इस क्षेत्र में विभिन्न जाट जातियों का भूमिचारा था। उसमें वर्चस्व गोदारा जाति के जाटों का था। उनके भूमि चारे के 360 गांव थे। ये गांव स्वयं गोदारों ने बसाए थे। वैसे तो दूसरी जात सारण के 360 गांव और कस्वों के भी 360 गांव और इतने ही गांव पूनिया जाति के जाटों के थे। जाटों की अन्य जातियां भी यहां अनेक गांवों पर काबिज थी। बहुत थोड़े गांव सांखला, चौहान, मोयल, तथा चायल जाति के राजपूतों के भी थे, लेकिन अधिक संख्या जाट जाति के गांवों की थी। इसलिए राव बीका को यहां राज्य स्थापित करने में अधिक संघर्ष नहीं करना पड़ा। गोदारा आदि बड़े जाट धड़े को उन्होंने अपनी कूटनीति से अपने पक्ष में कर लिया, तो अन्य जाटों के साथ उनका अधिक संघर्ष नहीं हुआ।
राव बीका के कोई 150 वर्ष बाद एक जाट गोपी गोदारा ने अपने गांव पर बीदावत राठौड़ों को अधिकार नहीं करने दिया। वह मानता था कि पैतृक रूप से गांव पर उसके पूर्वजों का अधिकार रहा है। गोपी बड़ा ही प्रबल वीर था। उसके पास अपनी एक छोटी मोटी सेना थी। उसके गांव का नाम बाघावास था। बाघावास के निकट की भूमि पर उसका अधिकार था। बीकानेर के महाराजा करण सिंह ने बीदावत रूपसिंह को वीदावाटी के कुछ गांव के साथ उसे बाघावास भी प्रदान किया। महाराजा करण सिंह ने गोपी गोदारा के गांव बाघावास को रूप सिंह के अधिकार में इसलिए भी दिया, क्योंकि इससे जाटों का कोई भूमिचारा नहीं रह जाएगा। बीकानेर के राजा गोदारों के साथ युद्ध नहीं करते थे। विक्रम संवत 1700 के आसपास बड़े संघर्ष के बाद रूपसिंह ने गोपी गोदारा को हरा दिया और बाघावास पर अपना अधिकार कर लिया। वही बाघावास तब से सांडवा कहलाने लगा। बीदावतों की बड़ी जागीर में एक सांडवा रहा है।










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