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श्रीडूंगरगढ़ लाइव…15 फ़रवरी 2023।प्रिय पाठकां,
श्रीडूंगरगढ़ रा मानीजेड़ा अर लोकलाडला साहित्यकार “सत्यदीपजी” आपणै सागै रोजीनां मारवाड़ी में बतावळ करसी।

साधु कुण…?

साधु हुवणो रो मतळब जद सोचणो पोळावां तो आंख आगै एक सवाल आय ऊभै, कै साधु कै हुवै, किंया हुवै। जठै तांई ग्यानी बतावै, जको आधि सूं मुगत हुवै मतळब कै इछ्यावां सूं छेड़ो लेवणै री सगती सांभळै बो ही साधु हुवै। साधु ना तो मोख पावणै री हूंस तेवड़ै अर ना ही संसारी कामनावां रो हेत। एकदम कामना रै भाव सूं छेड़ो राख परभु नै सिमरै बो साधु हुवै। जिणरी सोच में एसणा, इरख्या अर पावणै री कामनावां घर घाल्या राखै बै भेखदारी तो हो सकै है पण साधु कहावणै
रा ठांव तो को हुवै नीं। जका बाहरी जगत री सुख-सुविधावां में उळझ्यो ग्यान री गळदवाई री गुचळक्यां करै बै भरमावणिया भेख साधु कथीजै पण हुवै कोनी। साधु केवाणै रो इधकार तो बो ही राखै, जको-
*** सर्वत्रः निःस्पृहो मुनिसत्तमः*** भाव री साधना करै। निसकाम भाव नै आपरै हियै ढुकावणियो अर तपाणियो ही साधु होवणै रो पात्र हुवै। कामना रहित होवणो ही साधु सोनै ने परखणै री कसोटी हुवै।
अठै गीताकार भगवान श्रीकृष्ण नै जका दिशा निर्देश साधुता सारु दिया है।बै समझावै –
योगसत्रयस्तकरकर्माणं ज्ञानसंछिन्नसंशय
आत्मवंतं न कर्माणि निबध्नन्ति धनंजय।
अठै साव साफ -साफ इसारो देईज्यो है, को जिण जीव आपरै चेतै ने साधनै साधना री धारणा कानी मोड़ ली, मन रा सगळा संसयां नै परै करनै संसयमुगत हो लिया बो ही साधुता नै धार सकै है। बो ही करमबंधणा सू मुगत होयनै साधक हुवै। जगती रै पंपाळां सूं परै हो सकै है।
जैन उतराध्ययन में भी ग्यान री बात इण भांत कथीजी है-” पण्णा समिक्खए धम्मं ” मतलब कै परग्या (बुधी) सूं ही धरम साखीजै, परग्या सूं ही धरम संसयां रो खातमों करै। जका निरमळ परग्या सूं जुड़ै, ग्यान आचरण री धारणा करै ,बो ही साधु बणै। साधु बो ही हुवै जिण बुधी नै थिर राखणो सीख लियो है। बिरम तत रो भान जाणलै अर परम रै भावां में डूंगो डूबणै रो जतन सीखलै। मिनख पूरो अभ्यास करनै मन री चंचळाई नै बस में कर बिराग नै जगावै बा साधना बा धारणा ही साधु बणावै। जीणै रो हरएक पल निरभयता नै पकड़ै अर कर्म सूं प्रेरणा देवै। साधु री साधना रा मारग बा रास हुवै जका मन घोड़ै नै बख में राखै। साधु कल्याण मारग रो जातरी हुवै।
ऊँ शांति, ऊँ आनंद।
सत्यदीप।

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